गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें आशा की नयी किरणेंरामचरण महेन्द्र
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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...
कल्पित भय व्यर्थ हैं
बच्चा अनेक अनहोनी घटनाओं, अजीब प्रकारसे आनेवाले फल, कष्टदायक चीजोंकी बाबत सोचकर चिन्तित रहा करता है। बिजली मेरे ऊपर न गिर जाय? मैं नदी या तालाबमें न डूब जाऊँ? मुझे सिंह न खा डाले? यदि मुझे अकेले छोड़कर पिताजी चले जायें तो क्या हो? कहीं मैं मर न जाऊँ? ये सब कल्पित भय निरन्तर बच्चेकेमनःक्षेत्रमें उदित होते रहते हैं। बच्चे इन मिथ्या भयोंमें अज्ञानवश फँसे रहते हैं।
ऐसे ही अनेक मनुष्योंके मिथ्या भय और चिन्ताएँ होती हैं। उनके भय, निराशा, शंका, चिन्ता आदि कल्पित बन्धनोंपर आधारित होती हैं। वे इन थोथे बन्धनोंमें बँधे रहते हैं। अपने आनेवाले लाभों और उन्नतिके स्थानपर ये लोग मनकी व्यथा, पीड़ा, रोग, कष्ट, भय आदिके बाबत सोचा करते हैं। निन्यानबे प्रतिशत भय ऐसे है, जो आगे आते ही नहीं। यदि हम अपने इन कल्पित शत्रुओंको पराजित कर दें, तो सुव्यवस्थित जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
ईश्वरकी इस सर्वांगपूर्ण सुन्दर सृष्टिमें नष्ट होनेवाली चीज नहीं है। वह पूर्णतासे भरी है। जेनरल जार्ज क्रुक लिखते है, 'मेरा सब दुःख, चिन्ताएँ वास्तविक स्थितिसे उत्पन्न न होकर कल्पित भयोंसे उत्पन्न हुए।' इसीलिये शेक्सपीयरने कहा है कि 'कायर आदमी मौतसे पहले कई बार मर चुके होते हैं-इसी खयालसे कि मौत अब आयी-अब आयी और बहादुर आदमी तो एक बार ही मरता है जबकि साक्षात् मृत्यु ही उसे घेर लेती है।'
यदि वास्तवमें आपको किसी बातकी चिन्ता है, तो औसतन उनमेंसे अनेक बातें कभी न घटेंगी, केवल मनमें उनका भारमात्र बना रहेगा। सम्मव है, ये बातें औसतके नियमोंके अनुसार न आयें, जिनसे आप व्यर्थ ही मन-ही-मन परेशान हो रहे हैं।
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- अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
- दुर्बलता एक पाप है
- आप और आपका संसार
- अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
- तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
- कथनी और करनी?
- शक्तिका हास क्यों होता है?
- उन्नतिमें बाधक कौन?
- अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
- इसका क्या कारण है?
- अभावोंको चुनौती दीजिये
- आपके अभाव और अधूरापन
- आपकी संचित शक्तियां
- शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
- महानताके बीज
- पुरुषार्थ कीजिये !
- आलस्य न करना ही अमृत पद है
- विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
- प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
- दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
- क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
- मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
- गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
- हमें क्या इष्ट है ?
- बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
- चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
- पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
- स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
- आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
- लक्ष्मीजी आती हैं
- लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
- इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
- लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
- लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
- समृद्धि के पथपर
- आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
- 'किंतु' और 'परंतु'
- हिचकिचाहट
- निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
- आपके वशकी बात
- जीवन-पराग
- मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
- सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
- जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
- सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
- आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
- जीवनकी कला
- जीवनमें रस लें
- बन्धनोंसे मुक्त समझें
- आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
- समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
- स्वभाव कैसे बदले?
- शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
- बहम, शंका, संदेह
- संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
- मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
- सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
- अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
- चलते रहो !
- व्यस्त रहा कीजिये
- छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
- कल्पित भय व्यर्थ हैं
- अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
- मानसिक संतुलन धारण कीजिये
- दुर्भावना तथा सद्धावना
- मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
- प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
- जीवन की भूलें
- अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
- ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
- शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
- ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
- शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
- अमूल्य वचन