गीता प्रेस, गोरखपुर >> सत्संग के फूल सत्संग के फूलराजेन्द्र कुमार धवन
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प्रस्तुत है जीवन्मुक्त तत्त्वज्ञ एवं भगवत्प्रेमी महापुरुष के सत्संग से यथाश्रुत तथा यथागृहीत बातें।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।ॐ श्रीपरमात्मने नम:।।
प्राक्कथन
जीवन्मुक्त, तत्त्वज्ञ एवं भगवत्प्रेमी महापुरुष के सत्संग से यथाश्रुत
तथा यथागृहीत बातें मैं समय-समय पर अपनी डायरी में लिखता रहा हूँ। उसमें
से कुछ बातें ‘ज्ञान के दीप जले’ नाम से प्रकाशित की
जा चुकी
हैं; जिन्हें पाठकों ने बहुत पसन्द किया है। अब डायरी में लिखित कुछ बातें
‘सत्संग के फूल’ नाम से प्रकाशित की जा रही है।
सत्संग-प्रेमी
पाठकों से यह आशा है कि वे ‘ज्ञान के दीप जले’ की
भाँति
प्रस्तुत पुस्तक से भी लाभ उठायेंगे।
विनीत
संकलनकर्ता
संकलनकर्ता
।।ॐ श्रीपरमात्मने नम:।।
सत्संग के फूल
पराकृतनमद्बन्धं परं ब्रह्म नराकृति।
सौन्दर्यसारसर्वस्वं वन्दे नन्दात्मजं मह:।।
प्रपन्नपारिजाताय तोत्त्रवेत्रैकपाणये।
ज्ञानमुद्राय कृष्णाय गीतामृतदुहे:नमः।।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।
वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात्
पीताम्बरादरुणविम्बफलाधरोष्ठात्।
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात्
कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने।।
हरि: ऊँ नमोऽस्तु परमात्मने नम:।
श्रीगोविन्दाय नमो नम:।
श्रीगुरुचरणकमलेभ्यो नमः।
महात्मभ्यो नम:।
सर्वेभ्यो नमो नम:।
सौन्दर्यसारसर्वस्वं वन्दे नन्दात्मजं मह:।।
प्रपन्नपारिजाताय तोत्त्रवेत्रैकपाणये।
ज्ञानमुद्राय कृष्णाय गीतामृतदुहे:नमः।।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।
वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात्
पीताम्बरादरुणविम्बफलाधरोष्ठात्।
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात्
कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने।।
हरि: ऊँ नमोऽस्तु परमात्मने नम:।
श्रीगोविन्दाय नमो नम:।
श्रीगुरुचरणकमलेभ्यो नमः।
महात्मभ्यो नम:।
सर्वेभ्यो नमो नम:।
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