गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत वचन अमृत वचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तक में ऐसे दामी अमूल्य वचन हैं जिनमें भगवन्नाम, भगवत्स्मृति, गीताजी निःस्वार्थ सेवा तथा सत्संग की महिमा विशेषता से कही गयी है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।श्रीहरि:।।
निवेदन
महापुरुषों ने जिस तत्त्व को, आनन्द को प्राप्त कर लिया है उस आनन्द की
प्राप्ति सभी भाई-बहिनों को हो जाय, ऐसा उनका स्वाभाविक प्रयास रहता है ।
उसी बात को लक्ष्य में रखकर उनकी सभी चेष्टाएँ होती हैं। इस बात की उन्हें
धुन सवार हो जाती है। उनके मन में यही लगन रहती है कि किस प्रकार मनुष्यों
का व्यवहार सात्त्विक हो, स्वार्थरहित हो, प्रेममय हो, उनके दैनिक जीवन
में शान्ति-आनन्द का अनुभव हो और ऊँचे-से-ऊँचा आध्यात्मिक लाभ हो। इसी
दिशा में उनका कहना, लिखना एवं समझाना होता है।
परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका वर्तमान युग में एक ऐसे महापुरुष हुए हैं जिनकी सभी चेष्टाएँ इसी भाव से स्वाभाविक होती थीं। गीता प्रेस से प्रकाशित पुस्तकों के पाठकगण प्राय: उनसे परिचित हैं। वे गंगा के इस पार ऋषिकेश में, गंगा के उस पार टीबडी पर, वटवृक्ष के नीचे, जंगलों में तथा समय-समय पर अन्य स्थानों में सत्संग का आयोजन करते थे। सत्संगों में जो समय-समय पर उनके मुख से अमृतमय अमूल्य वचन सुनने को मिले, उन्हें संगृहीत किया गया है। इन्हीं वचनों को ‘अमृत वचन’ पुस्तक के नाम से प्रकाशित करके आप पाठकगणों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।
इस पुस्तक में ऐसे दामी अमूल्य वतन हैं जिनमें भगवन्नाम, भगवत्स्मृति, गीताजी, नि:स्वार्थ सेवा तथा सत्संग की महिमा विशेषता से कहीं गयी है। व्यवहार की ऐसी बातें भी हैं, जिन्हें हम काम में लावें तो हमारे गृहस्थ-जीवन में बड़ी शान्ति मिल सकती है। हमारे व्यापार का सुधार हो सकता है, उच्चकोटि का व्यवहार हो सकता है तथा उन बातों को काम में लाकर हम गृहस्थ में रहते हुए, व्यापार करते हुए भगवत्प्राप्ति कर सकते हैं। ऐसे समझने में सरल, उपयोगी, अमूल्य वचन बहुत कम उपलब्ध होते हैं। भगवत्कृपा ही ये हमें इस पुस्तक रूप में उपलब्ध हो रहे हैं।
हमें आशा है कि पाठकगण इन वचनों को ध्यान से पढ़कर मनन करेंगे एवं जीवन में उतारने का प्रयास करके विशेष आध्यात्मिक लाभ उठायेंगे।
परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका वर्तमान युग में एक ऐसे महापुरुष हुए हैं जिनकी सभी चेष्टाएँ इसी भाव से स्वाभाविक होती थीं। गीता प्रेस से प्रकाशित पुस्तकों के पाठकगण प्राय: उनसे परिचित हैं। वे गंगा के इस पार ऋषिकेश में, गंगा के उस पार टीबडी पर, वटवृक्ष के नीचे, जंगलों में तथा समय-समय पर अन्य स्थानों में सत्संग का आयोजन करते थे। सत्संगों में जो समय-समय पर उनके मुख से अमृतमय अमूल्य वचन सुनने को मिले, उन्हें संगृहीत किया गया है। इन्हीं वचनों को ‘अमृत वचन’ पुस्तक के नाम से प्रकाशित करके आप पाठकगणों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।
इस पुस्तक में ऐसे दामी अमूल्य वतन हैं जिनमें भगवन्नाम, भगवत्स्मृति, गीताजी, नि:स्वार्थ सेवा तथा सत्संग की महिमा विशेषता से कहीं गयी है। व्यवहार की ऐसी बातें भी हैं, जिन्हें हम काम में लावें तो हमारे गृहस्थ-जीवन में बड़ी शान्ति मिल सकती है। हमारे व्यापार का सुधार हो सकता है, उच्चकोटि का व्यवहार हो सकता है तथा उन बातों को काम में लाकर हम गृहस्थ में रहते हुए, व्यापार करते हुए भगवत्प्राप्ति कर सकते हैं। ऐसे समझने में सरल, उपयोगी, अमूल्य वचन बहुत कम उपलब्ध होते हैं। भगवत्कृपा ही ये हमें इस पुस्तक रूप में उपलब्ध हो रहे हैं।
हमें आशा है कि पाठकगण इन वचनों को ध्यान से पढ़कर मनन करेंगे एवं जीवन में उतारने का प्रयास करके विशेष आध्यात्मिक लाभ उठायेंगे।
-प्रकाशक
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