लोगों की राय

जैन साहित्य >> गोम्मटसार, जीवकाण्ड (द्वितीय भाग)

गोम्मटसार, जीवकाण्ड (द्वितीय भाग)

आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :592
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10489
आईएसबीएन :8126305533

Like this Hindi book 0

जैन धर्म के जीवतत्त्व और कर्मसिद्धान्त की विस्तार से व्याख्या करने वाला महान ग्रन्थ है 'गोम्मटसार'.

जैन धर्म के जीवतत्त्व और कर्मसिद्धान्त की विस्तार से व्याख्या करने वाला महान ग्रन्थ है 'गोम्मटसार'. आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती (दसवीं शताब्दी) ने इस वृहत्काय ग्रन्थ की रचना 'गोम्मटसार जीवकाण्ड' और 'गोम्मटसार कर्मकाण्ड' के रूप में की थी. डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये और सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री के सम्पादकत्व में यह ग्रन्थ प्राकृत मूल गाथा, श्रीमत केशववर्णी विरचित कर्नाट-वृत्ति जीवतत्त्व-प्रदीपिका संस्कृत टीका तथा हिन्दी अनुवाद एवं विस्तृत प्रस्तावना के साथ चार वृहत भागों (गोम्मटसार जीवकाण्ड, भाग 1,2 और गोम्मटसार कर्मकाण्ड, भाग 1,2) में प्रकाशित हुआ है.

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book