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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान के रहने के पाँच स्थान

भगवान के रहने के पाँच स्थान

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :43
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1083
आईएसबीएन :81-293-0426-0

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प्रस्तुत है भगवान के रहने का पाँच स्थान....

अमूल्य वचन

 

  • ऐसी चेष्टा करनी चाहिये, जिससे एकान्त स्थानमें अकेलेका ही मन प्रसन्नतापूर्वक स्थिर रहे। प्रफुल्लित चित्तसे एकान्तमें श्वासके द्वारा निरन्तर नामजप करनेसे ऐसा हो सकता है।
  • भगवत्प्रेम एवं भक्ति-ज्ञान-वैराग्य-सम्बन्धी शास्त्रोंको पढ़ना चाहिये।
  • एकान्त देशमें ध्यान करते समय चाहे किसी भी बातका स्मरण क्यों न हो, उसको तुरन्त भुला देना चाहिये। इस संकल्पत्यागसे बड़ा लाभ होता है।
  • धनकी प्राप्तिके उद्देश्यसे कार्य करनेपर मन संसारमें रम जाता है, इसलिये सांसारिक कार्य बड़ी सावधानीके साथ केवल भगवत्की प्रीतिके लिये ही करना चाहिये। इस प्रकारसे भी अधिक कार्य न करे, क्योंकि कार्यकी अधिकता से उद्देश्यमें परिवर्तन हो जाता है।
  • सांसारिक पदार्थों और मनुष्योंसे मिलना-जुलना कम रखना चाहिये।
  • संसार-सम्बन्धी बातें बहुत ही कम करनी चाहिये।
  • बिना पूछे न तो किसीके अवगुण बताने चाहिये और न उनकी तरफ ध्यान ही देना चाहिये।

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    अनुक्रम

  1. अमूल्य वचन
  2. भगवानके रहनेके पाँच स्थान : पाँच महायज्ञ
  3. पतिव्रता ब्राह्मणीका उपाख्यान
  4. तुलाधारके सत्य और समताकी प्रशंसा
  5. गीता माहात्म्य

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