गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान के रहने के पाँच स्थान भगवान के रहने के पाँच स्थानजयदयाल गोयन्दका
|
1 पाठकों को प्रिय 208 पाठक हैं |
प्रस्तुत है भगवान के रहने का पाँच स्थान....
अमूल्य वचन
- ऐसी चेष्टा करनी चाहिये, जिससे एकान्त स्थानमें अकेलेका ही मन प्रसन्नतापूर्वक स्थिर रहे। प्रफुल्लित चित्तसे एकान्तमें श्वासके द्वारा निरन्तर नामजप करनेसे ऐसा हो सकता है।
- भगवत्प्रेम एवं भक्ति-ज्ञान-वैराग्य-सम्बन्धी शास्त्रोंको पढ़ना चाहिये।
- एकान्त देशमें ध्यान करते समय चाहे किसी भी बातका स्मरण क्यों न हो, उसको तुरन्त भुला देना चाहिये। इस संकल्पत्यागसे बड़ा लाभ होता है।
- धनकी प्राप्तिके उद्देश्यसे कार्य करनेपर मन संसारमें रम जाता है, इसलिये सांसारिक कार्य बड़ी सावधानीके साथ केवल भगवत्की प्रीतिके लिये ही करना चाहिये। इस प्रकारसे भी अधिक कार्य न करे, क्योंकि कार्यकी अधिकता से उद्देश्यमें परिवर्तन हो जाता है।
- सांसारिक पदार्थों और मनुष्योंसे मिलना-जुलना कम रखना चाहिये।
- संसार-सम्बन्धी बातें बहुत ही कम करनी चाहिये।
- बिना पूछे न तो किसीके अवगुण बताने चाहिये और न उनकी तरफ ध्यान ही देना चाहिये।
|
- अमूल्य वचन
- भगवानके रहनेके पाँच स्थान : पाँच महायज्ञ
- पतिव्रता ब्राह्मणीका उपाख्यान
- तुलाधारके सत्य और समताकी प्रशंसा
- गीता माहात्म्य
अनुक्रम
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book