गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमूल्य वचन अमूल्य वचनजयदयाल गोयन्दका
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अमूल्य वचन ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सम्पादक का निवेदन
‘तत्त्व-चिन्तामणि’ का यह चौथा भाग है। इसमें भी लेखक
के
‘कल्याण’ में प्रकाशित लेखों का संग्रह है। पिछले तीन
भागों
को जनता ने जिस आदर से अपनाया, उसे देखने से यह सिद्ध होता है कि लोगों ने
उनसे लाभ उठाने की चेष्टा की है। वर्तमान नास्तिकतापूर्ण वातावरण में यह
बहुत ही शुभ लक्षण है। इसी को देखकर यह चौथा भाग प्रकाशित किया जा रहा है।
इसमें गहरे दार्शनिक तत्त्वों पर विचार करने के साथ ही-साथ उन विविध
साधनों का वर्णन है
जिनका आश्रय लेने पर मनुष्य पवित्र हृदय होकर अपने जीवन के परम ध्येय को अनायास ही प्राप्त कर सकता है। भगवान के रहस्य तत्त्व स्वरूप गुणों के सम्बन्ध में भी बड़ा सुन्दर विवेचन है। पातञ्जल योग के खास-खास विषयों का निरूपण है। नवधा भक्ति का विशद वर्णन है। श्रीमद्भागवद्गीता के कई प्रसंगों का महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण है। संत-महात्माओं के स्वरूप, लक्षण और महत्त्व की व्याख्या है।
वर्णाश्रमधर्म का महत्त्व बतलाया गया है और छोटे-छोटे सुकुमार-मति बालकों के जीवन को उच्च बनाने वाली शिक्षा भी दी गयी है। सारांश यह कि यह भाग सभी के लिये समान उपयोगी, लाभप्रद और आदरणीय है। मैं भारतीय नर-नारियों से प्रार्थना करता हूँ कि वे इसे पढ़ें और इसमें बताये हुए साधनों को और आदर्शों को श्रद्धा-पूर्वक अपने जीवन में उतारने की चेष्टा करें। मेरा विश्वास है कि ऐसा करने पर कुछ ही समय में उनके अपने जीवन में विलक्ष्ण परिवर्तन और अपूर्व लाभ दिखायी देगा।
कागजों की इस महँगी में भी इसका मूल्य बहुत कम रखा गया है, इससे पुस्तक खरीदने वालों को असुविधा भी नहीं होगी। आशा है पाठक-पाठिकागण इससे विशेष लाभ उठावेंगे।
जिनका आश्रय लेने पर मनुष्य पवित्र हृदय होकर अपने जीवन के परम ध्येय को अनायास ही प्राप्त कर सकता है। भगवान के रहस्य तत्त्व स्वरूप गुणों के सम्बन्ध में भी बड़ा सुन्दर विवेचन है। पातञ्जल योग के खास-खास विषयों का निरूपण है। नवधा भक्ति का विशद वर्णन है। श्रीमद्भागवद्गीता के कई प्रसंगों का महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण है। संत-महात्माओं के स्वरूप, लक्षण और महत्त्व की व्याख्या है।
वर्णाश्रमधर्म का महत्त्व बतलाया गया है और छोटे-छोटे सुकुमार-मति बालकों के जीवन को उच्च बनाने वाली शिक्षा भी दी गयी है। सारांश यह कि यह भाग सभी के लिये समान उपयोगी, लाभप्रद और आदरणीय है। मैं भारतीय नर-नारियों से प्रार्थना करता हूँ कि वे इसे पढ़ें और इसमें बताये हुए साधनों को और आदर्शों को श्रद्धा-पूर्वक अपने जीवन में उतारने की चेष्टा करें। मेरा विश्वास है कि ऐसा करने पर कुछ ही समय में उनके अपने जीवन में विलक्ष्ण परिवर्तन और अपूर्व लाभ दिखायी देगा।
कागजों की इस महँगी में भी इसका मूल्य बहुत कम रखा गया है, इससे पुस्तक खरीदने वालों को असुविधा भी नहीं होगी। आशा है पाठक-पाठिकागण इससे विशेष लाभ उठावेंगे।
विनीत-
हनुमानप्रसाद पोद्दार
हनुमानप्रसाद पोद्दार
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