गीता प्रेस, गोरखपुर >> गीता पढ़ने से लाभ गीता पढ़ने से लाभजयदयाल गोयन्दका
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प्रस्तुत पुस्तक में गीता पढ़ने से लाभ और त्याग से भगवत्प्राप्ति का वर्णन किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।ॐ श्रीपरमात्मने नम:।।
श्रीमद्भागवद्गीता एक परम रहस्यमय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सार्वभौम ग्रन्थ
है। यह साक्षात् भगवान् की दिव्य वाणी है, उनके हृदय का उद्गार है। इसका
महत्त्व बतलाने की वाणी में शक्ति नहीं है। इसकी महिमा अपरिमित है, यथार्थ
में इसका वर्णन कोई नहीं कर सकता। शेष, महेश, गणेश, दिनेश भी इसकी महिमा
को पूरी तरह से नहीं कह सकते, फिर मनुष्य की तो बात ही क्या है।
इतिहास-पुराण आदि में जगह-जगह इसकी महिमा गायी गयी है, किन्तु उस सबको
एकत्र करने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि इसकी महिमा इतनी ही है; क्योंकि
इसकी महिमा का कोई पार नहीं है।
गीता आनन्द-सुधाका सीमा रहित छलकता हुआ समुद्र है। इसमें भावों और अर्थों की इतनी गम्भीरता और व्यापकता है कि मनुष्य जितनी ही बार इसमें डुबकी लगाता है, उतनी ही बार वह नित्य नवीन आनन्द को प्राप्त कर मुदित और मुग्घ होता है। रत्नाकर सागर में डुबकी लगाने वाला चाहे रत्नों से वंचित रह जाय, पर इस दिव्य रसामृत-समुद्र में डुबकी लगाने-वाला कभी खाली हाथ नहीं निकलता। इसकी सरस और सार्थ-सुधा इतनी स्वादु है कि उसके ग्रहण से नित्य नया स्वाद मिलता रहता है। रसिकशेखर श्यामसुन्दर की इस रसीली वाणी में इतनी मोहकता और इतना स्वादु भरा है कि जिसको एक बार इस अमृत की बूँद प्राप्त हो गयी, उसकी रुचि उत्तरोत्तर बढ़ती ही रहती है।
गीता आनन्द-सुधाका सीमा रहित छलकता हुआ समुद्र है। इसमें भावों और अर्थों की इतनी गम्भीरता और व्यापकता है कि मनुष्य जितनी ही बार इसमें डुबकी लगाता है, उतनी ही बार वह नित्य नवीन आनन्द को प्राप्त कर मुदित और मुग्घ होता है। रत्नाकर सागर में डुबकी लगाने वाला चाहे रत्नों से वंचित रह जाय, पर इस दिव्य रसामृत-समुद्र में डुबकी लगाने-वाला कभी खाली हाथ नहीं निकलता। इसकी सरस और सार्थ-सुधा इतनी स्वादु है कि उसके ग्रहण से नित्य नया स्वाद मिलता रहता है। रसिकशेखर श्यामसुन्दर की इस रसीली वाणी में इतनी मोहकता और इतना स्वादु भरा है कि जिसको एक बार इस अमृत की बूँद प्राप्त हो गयी, उसकी रुचि उत्तरोत्तर बढ़ती ही रहती है।
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