भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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आज के साहित्य जगत में कालिदास और शेक्सपियर की तुलना की जाती है। किन्तु
हम समझते हैं कि यह तुलना निरर्थक है। दोनों के काल में बड़ा अन्तर है।
कालिदास प्राचीन काल के कवि हैं और शेक्सपियर बहुत ही बाद का कवि है।
किन्तु प्राचीन और नवीन के विषय में स्वयं कालिदास ने कहा है-
'पुराना होने से कोई काव्य ग्राह्य नहीं हो सकता और नवीन होने के कारण
त्याज्य भी नहीं हो सकता।'
हम शेक्सपियर को नवीन होने के कारण त्याज्य नहीं मान रहे हैं अपितु हम तो
यही कहना चाहते हैं कि भले ही अंग्रेजी काव्य जगत में शेक्सपियर का अन्यतम
स्थान हो किन्तु कालिदास की रचनाओं से उसकी तुलना करना समीचीन नहीं
होगा। वह कालिदास के एक अंशको भी स्पर्श नहीं कर पाता।
हां, तुलसीदास से शेक्सपियर की तुलना करना चाहे तो की जा सकती है।
शेक्सपियर ने एक स्थान पर कहा है-आंखों के जुबान नहीं और जुबान के
आंख नहीं। किन्तु इससे पूर्व तुलसीदास इसी भाव को जनकपुरी में राम-जानकी
के प्रथम दर्शन के अवसर पर इन शब्दों में रूपायित कर चुके थे-
गिरा अनयन नयन बिनु बानी।
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