भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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अभिज्ञान शाकुन्तलम् की प्रसिद्धि का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि
आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व सन् 1789 में सर विलियम जोन्स ने इसका
अंग्रेजी में अनुवाद किया तो उस अंग्रेजी अनुवाद का जॉर्ज फोरेस्टर
ने सन् 1891 में जर्मनी भाषा में अनुवाद प्रकाशित कर दिया। इसी
अनुवाद को पढ़कर जर्मनी के सर्वश्रेष्ठ महाकवि गेठे ने अपने हृदय का जो
उद्गार प्रकट किया वह अवर्णनीय है। उन्होंने कहा था :-
'यदि तुम युवावस्था के फूल और प्रौढ़ावस्था के फल और अन्य ऐसी सामग्रियां
एक ही स्थान पर खोजना चाहो जिनसे आत्मा प्रभावित होता हो, तृप्त
होता हो और शांति पाता हो अर्थात् यदि तुम स्वर्ग और मर्त्यलोक को
एक ही स्थान पर देखना चाहते हो तो मेरे मुख से सहसा एक ही नाम
निकलता है-'शकुन्तला।'
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