भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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नटी : (विनय के साथ) आर्य, आप ठीक कहते हैं, तो अब आप जो आज्ञा दें, वही
किया जाय।
सूत्रधार : आर्ये! हम नाटक के विषय में विचार-विमर्श करें, इससे पहले यह
उत्तम होगा कि सभा में विराजमान गुणीजनों के कानों को आनन्दविभोर करने
वाला कोई रोचक-सा गीत हो जाय तो उचित होगा।
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