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भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित

अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित

सुबोधचन्द्र पंत

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :141
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 11183
आईएसबीएन :8120821548

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नटी : तो किस प्राकर का गीत आरम्भ किया जाय?

सूत्रधार : ग्रीष्म ऋतु अभी आरम्भ ही हो रही है, इस कारण बहुत ही सुहावनी भी लगती है। इस समय यदि ग्रीष्म ऋतु के अनुकूल ही कोई राग छेड़ो तो उत्तम होगा।
देखो-
इन दिनों नहाने में जल बड़ा सुहाता है, बार-बार नहाने को मन करता है। पाटल में बसा हुआ वन का पवन भी बड़ा ही अच्छा लगता है। वृक्षों की घनी छाया थकान को मिटा देती है और  नींद भी अच्छी आती है और फिर आजकल की संध्या तो इतनी सुहावनी होती है कि उसका  वर्णन करना ही कठिन है।

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