भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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नटी : ठीक है, ऐसा ही सही। (गाने लगती है।)
जिन शिरीष-सुमनों के सुकुमार केसरदल की शिखायें,
चूम-चूमकर रसमय भौरे फिर-फिर उड़ बैठ-बैठ जायें।
दया द्रवित हाथों से चुनकर लेकर सहृदयता से सत्त्वर
रचकर कर्णफूल फिर कानों में पहन रही प्रमदायें।।
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