भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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सूत्रधार : आर्ये! बहुत सुन्दर, बहुत अच्छा गाया। तुम्हारे इस राग को
सुनकर लोग ऐसे बेसुध-से हो गए हैं कि यह सारी रंगशाला ही चित्रलिखित-सी
दिखाई देने लगी है।
(कुछ क्षण रुककर) तो अब इनको इस समय कौन-सा नाटक दिखाकर इनका मनोरंजन किया
जाय?
नटी : आपने स्वयं ही तो पहले कहा था कि आज इनको महाकवि कालिदास का नव-रचित
अभिज्ञान शाकुन्तल नाटक दिखाकर इनका मनोरंजन किया जाय।
सूत्रधार : अरे हां! मैं तो भूल ही गया था। तुमने अच्छा स्मरण कराया।
वास्तव में तुम्हारा गीत इतना मनोहर था कि उसके राग ने मेरे मन को
बलपूर्वक ठीक वैसे ही खींच लिया जिस प्रकार कि...
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