भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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राजा : इसका यह कोमल शरीर यद्यपि वल्कल धारण करने योग्य नहीं है फिर भी
इसके शरीर को ये अलंकारों के समान ही सुशोभित कर रहे हैं। क्योंकि...
[रथ के कुछ आगे बढ़ जाने पर कहीं हम लोगों के आ जाने से तपोवन निवासियों
को कष्ट न हो, इसलिए हमको रथ यहीं रोक लेना चाहिए। मैं यहीं उतर
जाता हूं। यहां से पैदल चलना ठीक होगा।]
[सारथी रथ रोकता है।]
सारथी : लीजिए मैंने रास खींच ली है। रथ रुकने पर आयुष्मान उतर जायें।
[राजा रथ से उतरता है।]
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