भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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कालिदास
ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे।
उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप
निरूपित किया है। कालिदास की कथा विचित्र है। कहा जाता है कि उनको
देवी 'काली' की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी। इसीलिए इनका नाम 'कालिदास'
पड़ गया। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था
किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार
परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि 'विश्वामित्र' को उसी रूप में रखा
गया।
कारण कुछ भी हो, कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो
मत नहीं हैं। वे न केवल अपने समय के अप्रतिम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी
कोई उन जैसा अप्रतिम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और
तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।
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