लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> चेतावनी और सामयिक चेतावनी

चेतावनी और सामयिक चेतावनी

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1124
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

326 पाठक हैं

चेतावनी और सामयिक चेतावनी.....

Chetavani Aur Samyik Chetavani a hindi book by Jaidayal Goyandaka - चेतावनी और सामयिक चेतावनी - जयदयाल गोयन्दका

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

।।श्रीहरि:।।
शास्त्र और महापुरुष डंके की चोट चेतावनी देते आये हैं और दे रहे हैं। इस पर भी हमारे भाइयों की आँखें नहीं खुलतीं- यह बड़े आश्चर्य की बात है। मनुष्य का शरीर सम्पूर्ण शरीर से उत्तम और मुक्तिदायक होने के कारण अमूल्य माना गया है। चौरासी लाख योनियों में मनुष्य की योनि, सारी पृथ्वी में भारत भूमि और सारे धर्मों में वैदिक सनातन-धर्म को सर्वोत्तम बतलाते हैं। मनुष्य से बढ़कर कोई योनि देखने में भी नहीं आती, अध्यात्म-विषय की शिक्षा सारी पृथ्वी पर भारत से ही गयी है यानी दुनिया में जितने प्रधान-प्रधान धर्मप्रचारक हुए हैं, उन्होंने अध्यात्म-विषयक धार्मिक शिक्षा प्राय: भारत से ही पायी है। तथा यह वैदिक धर्म अनादि और सनातन है, सारे मतान्तर एवं धर्मों की उत्पत्ति इसके बाद इसके आधार पर हुई है। विधर्मी लोग भी इस वैदिक सनातन-धर्म को अनादि न मानने पर भी सबसे पहले तो मानते ही हैं। अतएव युक्ति से भी इन सबकी श्रेष्ठता सिद्ध होती है। ऐसे उत्तम देश, जाति और धर्म को पाकर भी जो लोग नहीं चेतते हैं, उनको बहुत ही पश्चात्ताप करना पड़ेगा।


सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि पछिताई।
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोस लगाइ।।


‘वे लोग मृत्यु के नजदीक आने पर सिर को धुन-धुन कर दु:खित हृदय से पश्चात्ताप करेंगे और कहेंगे कि कलिकाल रूप समय के प्रभाव के कारण मैं कल्याण के लिये कुछ भी नहीं कर पाया, मेरे प्रारब्ध में ऐसा ही लिखा था; ईश्वर की ऐसी ही मर्जी थी।’ परन्तु यह सब कहना उनकी भूल है; क्योंकि यह कलिकाल पापों का खजाना होनेपर भी आत्मोद्धार के लिये परम सहायक है।


कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुण:।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसंग: परं व्रजेत्।।

(श्रीमद्भावत 12/3/51)


‘हे राजन् ! दोष के खजाने कलियुग में एक ही यह महान् गुण है कि भगवान् श्रीकृष्ण के कीर्तन से ही आसक्तिरहित होकर मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है।’

केवल भगवान् के पवित्र गुणगान करने से ही मनुष्य परमपद को प्राप्त हो जाता है। आत्मोद्धार के लिये साधन करने में प्रारब्ध भी बाधक नहीं है। इसलिये प्रारब्ध को दोष देना व्यर्थ है और ईश्वर की दया का तो पार ही नहीं है-


आकर चारि लच्छ चौरासी।
जोनि भ्रमत यह जिव अबिनासी।।
फिरत सदा माया कर प्रेरा।
काल कर्म सुभाव गुन घेरा।।
कबहुँक करि करुना नर देही।
देत ईस बिनु हेतु सनेही।।

इस पर भी ईश्वर को दोष लगाना मूर्खता नहीं है तो और क्या है ? आज यदि हम अपने कर्मों के अनुसार बंदर होते तो इधर-उधर वृक्षों पर उछलते फिरते; पक्षी होते तो वन में, शूकर-कूकर होते तो गाँव में भटकते फिरते। इसके सिवा और क्या कर सकते थे ? कुछ सोच-विचार करके देखिये- परम दयालु ईश्वर की कितनी भारी दया है, ईश्वर ने यह मनुष्य का शरीर देकर हमें बहुत विलक्षण मौका दिया है, ऐसे अवसरों को पाकर हम लोगों को नहीं चूकना चाहिये। पूर्व में भी ईश्वर ने हम लोगों को ऐसा मौका कई बार दिया था, किन्तु हम लोग चेते नहीं; इस पर भी यह पुन: मौका दिया है। ऐसा मौका पाकर हमें सचेत होना चाहिये, क्योंकि महान् ऐश्वर्यशाली मान्धाता और युधिष्ठिर-सरीखे धर्मात्मा चक्रवर्ती राजा; हिरण्यकशिपु-जैसे दीर्घ आयु वाले रावण और कुम्भकर्ण-जैसे बली और प्रतापी दैत्य; वरुण, कुबेर और यमराज-जैसे लोकपाल और इन्द्र-जैसे देवताओं के भी राजा संसार में उत्पन्न हो-होकर इस शरीर और ऐश्वर्य को यहीं त्यागकर चले गये; किसी के साथ कुछ भी नहीं गया।

फिर विचार करना चाहिये कि इन तन, धन, कुटुम्ब और ऐश्वर्य आदि के साथ अल्प आयु वाले हम लोगों का तो संबंध ही कितना है। फिर आप लोग मदिरा पीये हुए उन्मत्त की भाँति इन सब बातों को भुलाकर दु:ख रूप संसार के अनित्य विषय-भोगों में एवं उनके साधन रूप धन संग्रह में तथा कुटुम्ब और शरीर के पालन में ही केवल अपने इस अमूल्य मनुष्य-जीवन को किसलिये धूल में मिला रहे हैं ? इन सबसे न तो आपका पूर्व में संबंध था और न भविष्य में रहनेवाला ही है, फिर इन क्षण-स्थायी वस्तुओं की उन्नति को ही अपनी उन्नति की पराकाष्ठा आप क्यों मानने लगे हैं ? यह जीवन अल्प है और मृत्यु हमारी बाट देख रही है; बिना खबर दिये ही अचानक पहुँचनेवाली है। अतएव जब तक इस देह में प्राण है, वृद्धावस्था दूर है, आपका इस पर अधिकार है, तब तक ही जिस काम के लिये आये हैं, उस अपने कर्तव्य का शीघ्रातिशीघ्र पालन कर लेना चाहिये।   

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai