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लघुपाराशरी एवं मध्यपाराशरी

केदारदत्त जोशी

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 11248
आईएसबीएन :8120823540

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2.4 द्वितीयेश (2L) तथा द्वादशेश (12L) का शुभाशुभत्व


लग्नाद् व्यय द्वितीयेशौ परेषां साहचर्यतः।
स्थानान्तरानुगुण्येन भवतः फलदायको।।8।।


लग्न से द्वितीय और द्वादश भाव के स्वामी जिस भाव या भावेश के साथ हों (साहचर्य) के अनुसार फल देते हैं, अथवा द्वितीयेश व द्वादशेश की अन्य राशि जिस स्थान पर पड़े, उस स्थान का फल दिया करते हैं।

1. साहचर्य सिद्धान्त
(क) यदि द्वितीयेश 2L अथवा द्वादशेश 12L किसी शुभ स्थान अर्थात् केन्द्र या त्रिकोण भाव में हों अथवा केन्द्रेश या त्रिकोणेश से युति करें तो निश्चय ही शुभ फल देते हैं।
(ख) त्रिषडाय की पाप राशि में हों या पापी त्रिपडायेश से युति करें तो 2L,12L पाप फल देते हैं।
(ग) मतान्तर से शुभ केन्द्र स्थान में स्थित होने पर या शुभ केन्द्राधिपति से युति करने पर द्वितीयेश और व्ययेश शुभ फल नहीं देते किन्तु अशुभ भी नहीं होते।
(घ) इसी प्रकार केन्द्र भाव की पाप राशि में 2L या 12L की स्थिति अथवा पापी केन्द्रेश से युति, पाप फल नहीं देती अपितु सम या अल्प शुभ परिणाम देती है।

2. स्थानान्तर गुण
(क) सूर्य या चन्द्रमा द्वितीयेश 2L या द्वादशेश 12L होने पर साहचर्य फल देंगे। कारण, इन ग्रहों की अन्य राशि होती ही नहीं।
(ख) द्वितीयेश व द्वादशेश की अन्य राशि यदि लग्न से त्रिकोण में पड़े तो निश्चय ही वे शुभ फल देंगे। वृष लग्न में 2L बुध की अन्य राशि 5H (पंचम भाव) में पड़ने से बुध शुभ फल देगा। यही बात वृश्चिक लग्न में द्वितीयेश गुरु के लिए भी कही जा सकती है। मेष लग्न में 12. गरु की अन्य राशि भाग्य में होने से द्वादशेश शुभ फल देगा।
(ग) द्वितीयेश तथा द्वादशेश की अन्य राशि त्रिषडाय में होने पर ये सामान्य शुभ फल देंगे। कारण-3, 6, 1 उपचय भाव होने से उन्नति देते हैं। अन्य विद्वानों के मतानुसार, यदि द्वितीयेश व द्वादशेश 2, और 12L नैसर्गिक पाप ग्रह, मंगल या शनि हों, तो त्रिषडाय भाव में पाप फल देंगे, शुभ फल नहीं।
(घ) यदि द्वितीयेश 2L मारकेश होता है तो 12L या व्ययेश भी, देह-सुख की हानि करता है। अतः इन ग्रहों को मारकत्व, शुभ-अशुभ सम्बन्ध होने पर भी, नष्ट नहीं होता। राहु महादशा में द्वितीयेश गुरु की मुक्ति में धन व यश मिला।

जन्म-1 नवम्बर, 1944, प्रातः 10 बजे, दिल्ली

(1) दशानाथ राहु की अष्टम भाव में तृतीयेश-चतुर्थेश शनि के साथ युति भले ही अशुभ जान पड़े किन्तु राहु का दृष्टि सम्बन्ध, अपने नियन्त्रक लाभेश बुध तथा दशमेश सूर्य एवं लग्नेश मंगल से होना, निश्चय ही कार्य क्षेत्र में सफलता, धन व यश देगा।
(2) चन्द्र कुंडली में भी दशानाथ राहु की दशमेश सह लाभेश शनि के शनि राहु साथ युति धन लाभ की पुष्टि करती है। यहाँ भी राहु का दृष्टि सम्बन्ध भाग्य व लाभ स्थान से हुआ है जो निश्चय ही भाग्य व लाभ वृद्धि का संकेतक है।
(3) अन्तर्दशानाथ गुरु-द्वितीयेश होकर दशम भाव से धन भाव को देख। रहा है। अतः धन की प्राप्ति होना निश्चित है।
पुनः द्वितीयेश गुरु की अन्य राशि पंचम अर्थात त्रिकोण भाव में होने से गुरु की भुक्ति धन लाभ में सहायक होगी। चन्द्र कुंडली में मुक्तिनाथ गुरु भाग्येशभोगेश होकर पंचम अर्थात् त्रिकोण भाव में है। यह योग धन और भाग्य वृद्धि दर्शाता है।
(4) गुरु की अन्तर्दशा में रोग व देह कष्ट, गुरु द्वितीयेश होने से मारकेश भी है। मारकेश का मारक भाव को देखना मारकत्व की वृद्धि करता है। गुरु नियन्त्रक सूर्य का द्वादश भाव में नीचस्थ होना भी, देह-सुख की कमी देता है। चन्द्र कुंडली में गुरु व्ययेश होकर एकादश भाव को देख रहा है तथा एकादशेश शनि से दृष्ट भी है। अतः गुरु की भुक्ति में रोग, पीड़ा व देह-कष्ट होना स्वाभाविक है।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी
  2. अपनी बात

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