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लघुपाराशरी भाष्य

रामचन्द्र कपूर

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :395
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 11249
आईएसबीएन :8120821378

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5.10 शुभ दशा में योगकारक ग्रह की भुक्ति


शुभस्यास्य प्रसक्तस्य दशाया योगकारकाः
स्वभुक्तिषु प्रयच्छन्ति कुत्र चिद्योगजं फलम् ।।35।।


शुभ ग्रह की दशा में योगकारक ग्रह की भुक्ति भी राजयोग नहीं दे पाती अपितु शुभ फल ही दिया करती है।

टिप्पणी-केन्द्र व त्रिकोण के स्वामी परस्पर सम्बन्ध करने पर योगकारक बन जाते हैं। यदि केन्द्रेश व त्रिकोणेश के बीच कोई सम्बन्ध न बनें तो वे शुभ ग्रह तो रहते हैं किन्तु योगकारक नहीं हो पाते। लग्नेश, केन्द्र व त्रिकोण भाव, दोनों का स्वामी होने से-योगकारक माना जाता है।
अब यदि दशानाथ स्वयं योगकारक ग्रह नहीं है तो उसके अन्तर्गत चलने वाली अन्तर्दशाएँ शुभ फल तो देंगी किन्तु राजयोग का फल नहीं दे पाएँगी।
(क) शुभ महादशा में योगकारक की भुक्ति = उत्कृष्ट शुभ फल किन्तु राजयोग से थोड़ा कम।
(ख) शुभ महादशा में शुभ ग्रह की भुक्ति = श्रेष्ठ शुभ फल
(ग) शुभ महादशा में सम ग्रह की भुक्ति = सामान्य शुभ फल
(घ) शुभ महादशा में पाप या मारक ग्रह की भुक्ति = मिश्रित या स्वल्प शुभ फल।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी
  2. अपनी बात

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