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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

जैमिनि बोले- 'श्रेष्ठ पक्षीगण! मुझे महाभारत- शास्त्रमें कई सन्देह हैं। उन सबको पूछनेके लिये पहले मैं भृगुकुलश्रेष्ठ महात्मा मार्कण्डेय मुनिके पास गया था। मेरे पूछनेपर उन्होंने कहा- 'विन्ध्यपर्वतपर द्रोणके पुत्र महात्मा पक्षी रहते हैं। वे तुम्हारे प्रश्नोंका विस्तारपूर्वक उत्तर देंगे।' उनकी आज्ञासे ही मैं इस महान् पर्वतपर आया हूँ। आपलोग हमारे प्रश्नोंको पूर्णरूपसे सुनकर उनका विवेचन करें।

पक्षियोंने कहा-ब्रह्मन्! आपका प्रश्न यदि हमारी बुद्धिके बाहर न होगा तो हम अवश्य उसका समाधान करेंगे। आप नि:शङ्क होकर सुनें। विप्रवर! चारों वेद, धर्मशास्त्र, सम्पूर्ण वेदाङ्ग तथा और भी जो वेदोंके समान माननीय इतिहास- पुराणादि हैं, उन सबमें हमारी बुद्धिका प्रवेश है; तथापि हम कोई प्रतिज्ञा नहीं कर सकते। आपको महाभारत में जो-जो सन्दिग्ध बात जान पड़े, उसे निर्भीक होकर पूछिये।

जैमिनि बोले- पक्षियो! आपलोगों का अन्त:करण निर्मल है। महाभारतमें मेरे लिये जो सन्दिग्ध बातें हैं, उन्हें बताता हूँ; सुनिये और सुनकर उनकी व्याख्या कीजिये। सर्वव्यापी भगवान् जनार्दन सम्पूर्ण जगत् के आधार, समस्त कारणोंके भी कारण और निर्गुण होते हुए भी मनुष्य- शरीरको कैसे प्राप्त हुए? द्रुपदकुमारी कृष्णा अकेली ही पाँच पाण्डवोंकी महारानी क्यों कर हुई? इस विषय में मुझे महान् सन्देह है। इसके सिवा द्रौपदी के पाँच महारथी पुत्र, जिनका अभी विवाह तक नहीं हुआ था, समस्त पाण्डव जिनके रक्षक थे तथा जो स्वयं भी बड़े बलवान् थे, अनाथ की भाँति कैसे मारे गये? महाभारत के विषयमें यह मेरा सन्देह है। आपलोग इसका निवारण करें।

पक्षियोंने कहा- जो सम्पूर्ण देवताओंके स्वामी, सर्वव्यापक, सबकी उत्पत्तिके कारण, अन्तर्यामी, प्रमाणोंके अविषय, सनातन, अविनाशी, चतुर्व्यूह- स्वरूप, त्रिगुणमय, निर्गुण, सबसे बड़े, अत्यन्त गौरवशाली, सर्वश्रेष्ठ तथा अमृतस्वरूप हैं, उन भगवान् विष्णुको हम सबसे पहले नमस्कार करते हैं। जिनसे बढ़कर सूक्ष्म तथा जिनसे अधिक बड़ा भी कोई नहीं है, जिनके द्वारा यह सम्पूर्ण विश्व व्याप्त है, जो इस जगत् के आदिकारण और अजन्मा हैं, जो उत्पत्ति, लय, प्रत्यक्ष और परोक्ष-सबसे विलक्षण हैं, इस सम्पूर्ण जगत् को जिनकी रचना बतलाते हैं तथा अन्त में जिनके भीतर इसका संहार होता है, उन परमेश्वरको हमारा नमस्कार है। तत्पश्चात् जो अपने चारों मुखोंसे ऋक्-साम आदि वेदोंका उच्चारण करते हुए तीनों लोकों को पवित्र करते हैं, उन आदिदेव ब्रह्माजी को भी हम एकाग्रचित्त से नमस्कार करते हैं। इसी प्रकार जिनके एक ही बाणसे पराजित होकर असुरगण कभी याज्ञिकों के यज्ञोंका विनाश नहीं करते, उन भगवान् शङ्करको भी मस्तक झुकाते हैं। इसके बाद हम अद्भुत कर्म करनेवाले व्यासजी के सम्पूर्ण मतोंकी व्याख्या करेंगे, जिन्होंने महाभारत के उद्देश्य से धर्म आदि का रहस्य प्रकट किया है। तत्त्वदर्शी मुनियोंने जलको 'नारा' कहा है। वह नारा ही पूर्वकालमें भगवान् का निवासस्थान रहा, इसलिये वे नारायण कहे गये हैं।*

* आपो नारा इति प्रोक्ता मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः।
अयनं तस्य ताः पूर्वं तेन नारायणः स्मृतः ॥
(४। ४३)

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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