गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
अलर्क बोले- भगवन्! अब मैं योगीके आचार-व्यवहारका यथार्थ वर्णन सुनना चाहता हूँ। वह किस प्रकार ब्रह्मके मार्गका अनुसरण करके कभी क्लेशमें नहीं पड़ता?
दत्तात्रेयजीने कहा- राजन्! ये जो मान और अपमान हैं, ये साधारण मनुष्योंको प्रसन्नता और उद्वेग देनेवाले होते हैं। उन्हें मानसे प्रसन्नता और अपमानसे उद्वेग होता है; किन्तु योगी उन दोनोंको ही ठीक उलटे अर्थमें ग्रहण करता है। अतः वे उसकी सिद्धिमें सहायक होते हैं। योगीके लिये मान और अपमानको विष एवं अमृतके रूपमें बताया गया है। इनमें अपमान तो अमृत है और मान भयंकर विष। योगी मार्गको भलीभाँति देखकर पैर रखे। वस्त्रसे छानकर जल पीये, सत्य वचन बोले और बुद्धिसे विचार करके जो ठीक जान पड़े, उसीका चिन्तन करे।*
* मानापमानौ यावेतौ प्रीत्युद्वेगकरौ नृणाम्।
तावेव विपरीतार्थो योगिनः सिद्धिकारकौ ॥
मानापमानौ यावेतौ तावेवाहुर्विषामृते।
अपमानोऽमृतं तत्र मानस्तु विषमं विषम्॥
चक्षुःपूतं न्यसेत्पाद वस्त्रपूतं जलं पिबेत्।
सत्यपूतां वदेद्वाणी बुद्धिपूतं च चिन्तयेत् ॥
(४१। २-४)
योगवेत्ता पुरुष आतिथ्य, श्राद्ध, यज्ञ, देवयात्रा तथा उत्सवोंमें न जाय। कार्यकी सिद्धिके लिये किसी बड़े आदमीके यहाँ भी कभी न जाय। जब गृहस्थके यहाँ रसोई-घरसे धुआँ न निकलता हो, आग बुझ गयी हो और घरके सब लोग खा-पी चुके हों, उस समय योगी भिक्षाके लिये जाय; परन्तु प्रतिदिन एक ही घरपर न जाय। योगमें प्रवृत्त रहनेवाला पुरुष सत्पुरुषोंके मार्गको कलङ्कित न करते हुए प्रायः ऐसा व्यवहार करे, जिससे लोग उसका सम्मान न करें, तिरस्कार ही करें। वह गृहस्थोंके यहाँसे अथवा घूमते-फिरते रहनेवाले लोगोंके घरोंसे भिक्षा ग्रहण करे; इनमें भी पहली अर्थात् गृहस्थके घरकी भिक्षा ही सर्वश्रेष्ठ एवं मुख्य है। जो गृहस्थ विनीत, श्रद्धालु, जितेन्द्रिय, श्रोत्रिय एवं उदार हृदयवाले हों, उन्हींके यहाँ योगीको सदा भिक्षाके लिये जाना चाहिये। इनके बाद जो दुष्ट और पतित न हों, ऐसे अन्य लोगोंके यहाँ भी वह भिक्षाके लिये जा सकता है। परन्तु छोटे वर्णके लोगोंके यहाँ भिक्षा माँगना निकृष्ट वृत्ति मानी गयी है।
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- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
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- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
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- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
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- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
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- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य