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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

विश्वामित्र बोले- यदि तुम राजा हो और राज- धर्मको भलीभाँति जानते हो तो मैं प्रतिग्रह की इच्छा रखनेवाला ब्राह्मण हूँ, मुझे इच्छानुसार दक्षिणा दो।

पक्षीगण कहते हैं- महर्षि की यह बात सुनकर राजाने अपना नया जन्म हुआ माना और प्रसन्नचित्तसे कहा।

हरिश्चन्द्र बोले- भगवन्! आपको मैं क्या हूँ, आप निःशङ्क होकर कहिये। यदि कोई दुर्लभ- से-दुर्लभ वस्तु हो तो उसे भी दी हुई ही समझें।

विश्वामित्रने कहा- वीरवर! तुम समुद्र, पर्वत, ग्राम और नगरोंसहित यह सारी पृथ्वी मुझे दे दो। रथ, घोड़े, हाथी, कोठार और खजाने सहित सारा राज्य भी मुझे समर्पित कर दो। इसके अतिरिक्त भी जो कुछ तुम्हारे पास है, वह मुझे दे दो। केवल अपनी स्त्री, पुत्र और शरीर को अपने पास रख लो। साथ ही अपने धर्म को भी तुम्हीं रखो; क्योंकि वह सदा कर्ता के ही साथ रहता है, परलोक में जानेपर भी वह साथ जाता है।

मुनिका यह वचन सुनकर राजा ने प्रसन्नचित्त से 'तथास्तु' कहा। हाथ जोड़कर उनकी आज्ञा स्वीकार की। उस समय उनके मुखपर शोक या चिन्ताका कोई चिह्न नहीं था।

विश्वामित्र बोले- राजर्षे ! यदि तुमने अपना राज्य, पृथ्वी, सेना और धन आदि सर्वस्व मुझे समर्पित कर दिया तो मुझ तपस्वी के इस राज्यमें रहते किसका प्रभुत्व रहा?

हरिश्चन्द्रने कहा- 'ब्रह्मन् ! मैंने जिस समय यह पृथ्वी दी है, उसी समय आप मेरे भी स्वामी हो गये। फिर आपके इस पृथ्वी के राजा होनेकी तो बात ही क्या है।

विश्वामित्र बोले-राजन्! यदि तुमने यह सारी पृथ्वी मुझे दान कर दी तो जहाँ-जहाँ मेरा प्रभुत्व हो, वहाँसे तुम्हें निकल जाना चाहिये। करधनी आदि समस्त आभूषणोंका संग्रह यहीं छोड़कर तुम वल्कलका वस्त्र लपेट लो और अपनी पत्नी तथा पुत्रके साथ चले जाओ।

'बहुत अच्छा' कहकर राजा हरिश्चन्द्र अपनी पत्नी शैब्या तथा पुत्र रोहिताश्वको साथ ले वहाँ से जाने लगे। उस समय विश्वामित्रने उनका मार्ग रोककर कहा- 'मुझे राजसूय-यज्ञकी दक्षिणा दिये बिना ही तुम कहाँ जा रहे हो?'

हरिश्चन्द्र बोले- भगवन्! यह अकण्टक राज्य तो मैंने आपको दे ही दिया, अब तो मेरे पास ये तीन शरीर ही शेष बचे हैं।

विश्वामित्रने कहा- तो भी तुम्हें मुझे यज्ञ की दक्षिणा तो देनी ही चाहिये। विशेषतः ब्राह्मणोंको कुछ देनेकी प्रतिज्ञा करके यदि न दिया जाय तो वह प्रतिज्ञा-भङ्ग का दोष उस व्यक्ति का नाश कर डालता है। राजन्! राजसूय-यज्ञ में ब्राह्मणों को जितने से सन्तोष हो, उस यज्ञ की उतनी ही दक्षिणा देनी चाहिये। तुमने ही पहले प्रतिज्ञा की है कि देनेकी घोषणा कर देनेपर अवश्य देना चाहिये, आततायियों से युद्ध करना चाहिये तथा आर्तजनों की रक्षा करनी चाहिये।

हरिश्चन्द्र बोले-भगवन्! इस समय मेरे पास कुछ भी नहीं है। समयानुसार अवश्य आपको दूंगा।

विश्वामित्रने कहा-राजन् ! इसके लिये मुझे कितने समयतक प्रतीक्षा करनी होगी, शीघ्र बताओ।

हरिश्चन्द्र बोले- ब्रह्मर्षे ! मैं एक महीने में आपको दक्षिणाके लिये धन दूंगा। इस समय मेरे पास धन नहीं है, अतः मुझे जानेकी आज्ञा दीजिये।

विश्वामित्रने कहा- नृपश्रेष्ठ ! जाओ, जाओ! अपने धर्मका पालन करो। तुम्हारा मार्ग कल्याणमय हो।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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