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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

पक्षी कहते हैं-विश्वामित्रने जब 'जाओ' कहकर जानेकी आज्ञा दी, तब राजा हरिश्चन्द्र नगरसे चले। उनके पीछे उनकी प्यारी पत्नी शैब्या भी चली, जो पैदल चलने के योग्य कदापि नहीं थी। रानी और राजकुमार सहित राजा हरिश्चन्द्र को नगरसे निकलते देख उनके अनुयायी सेवकगण तथा पुरवासी मनुष्य विलाप करने लगे- 'हा नाथ! हम पीड़ितोंका आप क्यों परित्याग कर रहे हैं? राजन् ! आप धर्ममें तत्पर रहनेवाले तथा पुरवासियोंपर कृपा रखनेवाले हैं। राजर्षे! यदि आप धर्म समझें तो हमें भी अपने साथ ले चलें। महाराज! दो घड़ी तो ठहर जाइये। हमारे नेत्ररूपी भ्रमर आपके मुखारविन्दकी रूपसुधाका पान कर लें। फिर हमें कब आपके दर्शनका सौभाग्य प्राप्त होगा। हाय! जिन महाराजके आगे-आगे चलने पर पीछे से कितने ही राजा चला करते थे, आज उन्हींके पीछे उनकी यह रानी अपने बालक पुत्र को गोद लेकर चल रही है। यात्रा के समय जिनके सेवक भी हाथियोंपर बैठकर आगे जाते थे, वे ही महाराज हरिश्चन्द्र आज पैदल चल रहे हैं ! हा राजन्! मनोहर भौंहों, चिकनी त्वचा तथा ऊँची नासिकासे सुशोभित आपका सुकुमार मुख मार्गमें धूलिसे धूसरित एवं क्लेशयुक्त होकर न जाने कैसी दशाको प्राप्त होगा। नृपश्रेष्ठ! ठहर जाइये, ठहर जाइये; यहीं अपने धर्मका पालन कीजिये। क्रूरताका परित्याग ही सबसे बड़ा धर्म है। विशेषतः क्षत्रियोंके लिये तो यही सबसे उत्तम है। नाथ! अब हमें स्त्री, पुत्र, धन-धान्य आदिसे क्या लेना है। यह सब छोड़कर हमलोग आपके साथ छायाकी भाँति रहेंगे। हा नाथ! हा महाराज!! हा स्वामिन्!!! आप हमें क्यों त्याग रहे हैं? जहाँ आप रहेंगे, वहीं हम भी रहेंगे। जहाँ आप हैं, वहीं सुख है। जहाँ आप हैं, वहीं नगर है और जहाँ हमारे महाराज आप हैं, वहीं हमारे लिये स्वर्ग है !

पुरवासियोंकी ये बातें सुनकर राजा हरिश्चन्द्र शोकमग्न हो उनपर दया करनेके लिये ही मार्गमें उस समय ठहर गये। विश्वामित्रने देखा, राजाका चित्त पुरवासियोंके वचनोंसे व्याकुल हो उठा है तब वे उनके पास आ पहुँचे और रोष तथा अमर्षसे आँखें फाड़कर बोले- 'अरे ! तू तो बड़ा दुराचारी, झूठा और कपटपूर्ण बातें करनेवाला है। धिक्कार है तुझे, जो मुझे राज्य देकर फिर उसे वापस ले लेना चाहता है।'

विश्वामित्र का यह कठोर वचन सुनकर राजा काँप उठे और 'जाता हूँ, जाता हूँ' कहकर अपनी पत्नीका हाथ पकड़कर खींचते हुए शीघ्रतापूर्वक चले। राजा अपनी पत्नीको खींच रहे थे। वह सुकुमारी अबला चलनेके परिश्रमसे थककर व्याकुल हो रही थी तो भी विश्वामित्रने सहसा उसकी पीठपर डंडेसे प्रहार किया। महारानीको इस प्रकार मार खाते देख महाराज हरिश्चन्द्र दुःखसे आतुर होकर केवल इतना ही कह सके, 'भगवन्! जाता हूँ।' उनके मुखसे और कोई बात नहीं निकल सकी। उस समय परम दयालु पाँच विश्वेदेव आपसमें इस प्रकार कहने लगे- 'ओह! यह विश्वामित्र तो बड़ा पापी है। न जाने किन लोकोंमें जायगा। इसने यज्ञकर्ताओंमें श्रेष्ठ इन महाराजको अपने राज्यसे नीचे उतार दिया है।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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