लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

प्रतिदिन पवित्रतापूर्वक रहने, प्रसिद्ध मन्त्र (कवच आदि) लिखकर बाँधने, उत्तम फूलों आदिकी माला धारण करने, पवित्र गृहमें रहने तथा अधिक परिश्रम न करनेसे गर्भवती स्त्रीकी उसके भयसे रक्षा होती है। अत: इसके लिये सदा चेष्टा करनी चाहिये। इसी प्रकार आठवाँ कुमार सस्यहा है, वह खेतीकी उपजको नष्ट करता है। उसकी भी शान्ति करनी चाहिये; इसके लिये उपाय है-खेतमें पुराना जूता रखना, अपसव्य होकर वहाँ जाना, चाण्डालका उसमें प्रवेश कराना, खेतके बाहर पूजा चढ़ाना और चन्द्रमा एवं जल (वरुण)-के नामों या मन्त्रोंका कीर्तन करना। दुःसहकी पहली कन्या नियोजिका है। वह मनुष्योंको परायी स्त्री और पराये धनके अपहरण आदिमें लगा देती है। पवित्र ग्रन्थों, मन्त्रों अथवा स्तुतियोंके पाठसे तथा क्रोध-लोभ आदि दुर्गुणोंका त्याग करनेसे उसकी शान्ति होती है। विद्वान् पुरुषको चाहिये कि 'नियोजिका मुझे इन दुष्कर्मों में लगा रही है' यों विचारकर उसका विरोध करते हुए उन कर्मोंका त्याग करे। जब कोई अपनेको गाली दे या मार बैठे तो भी यही सोचकर कि नियोजिकाने ही इसे इस बुराईमें लगाया है, क्रोध आदिके वशीभूत न हो। इसी प्रकार विद्वान् पुरुष सदा इस बातका स्मरण करता रहे कि नियोजिका ही मुझको और मेरे चित्तको परस्त्री-संसर्गमें लगाती है। दूसरी कन्याका नाम विरोधिनी है। वह परस्पर प्रेम रखनेवाले स्त्री-पुरुषोंमें, भाई- बन्धुओंमें, मित्रों, पिता-मातामें, पिता-पुत्रमें तथा सजातीय पुरुषोंमें विरोध डाला करती है। अतः बलिकर्म (पूजोपहारसमर्पण) करने, कठोर बातोंको सहने तथा शास्त्रीय आचार-विचारका पालन करनेके द्वारा उसके भयसे अपनी रक्षा करे। तीसरी कन्याका नाम स्वयंहारिका है। वह खलिहानसे अनाज, घर और गोशालेसे दूध-घी तथा बढ़नेवाले द्रव्यसे उसकी वृद्धि नष्ट कर देती है और सदा अन्तर्धान रहती है। इतना ही नहीं, रसोईघरसे अधपका अन्न तथा अन्नभंडारसे अनाज चुरा लेती है और परोसी हुई रसोईको भोजन करनेवाले मनुष्यके साथ स्वयं भी भोजन करती है। मनुष्योंके जूठे अन्नतक चुरा लेती है। जोते हुए खेत, घर और शालासे ऋद्धि-सिद्धिको हड़प लेती है। गायों और स्त्रियोंके थनोंसे दूध गायब कर देती है। दहीसे घी, तिलसे तेल, कुसुम्भ आदिका रंग तथा रूईसे सूत हर लेती है। इस प्रकार स्वयंहारिका निरन्तर अपहरणमें ही लगी रहती है। उससे रक्षा होनेके लिये अपने घरमें मोरके जोड़े रखे। स्त्रीकी कृत्रिम मूर्ति बनाकर स्थापित करे, घरकी दीवारपर रक्षाके मन्त्र और वाक्य लिखे, घरके भीतर जूठन न रहने दे, हवनकी अग्निसे तथा देवताको धूप देनेसे जो भस्म हो, उसे लेकर दूध आदिके बर्तनोंमें लगा दे [गाय और स्त्रीके स्तनोंमें तथा अन्नभंडार आदिमें भी उस भस्मका स्पर्श करा दे।] इससे रक्षा होती है। जो एक स्थानपर निवास करनेवाले पुरुषके मनमें उद्वेग पैदा करती है, वह भ्रामणी नामकी कन्या है। उसकी शान्तिके लिये आसन, शय्या तथा उस भूमिपर, जहाँ मनुष्य रहता हो, पीली सरसों छींट दे। साथ ही एकाग्रचित्त होकर पृथ्वी-सूक्तका जप करे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai