गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
दुःसहकी पाँचवीं कन्या स्त्रियोंके मासिक धर्म नष्ट करती है। इसलिये उसे ऋतुहारिका जानना चाहिये। उसकी शान्तिके लिये स्त्रीको तीर्थमें, देवालयके समीप, चैत्य वृक्षके नीचे, पर्वतके शिखरपर तथा नदीके संगम एवं सरोवरोंमें नहलाना चाहिये। साथ ही चिकित्साशास्त्रके ज्ञाता अच्छे वैद्यको बुलाकर उसकी दी हुई उत्तम ओषधियोंका सेवन भी कराना चाहिये। छठी कन्याका नाम स्मृतिहरा है। यह स्त्रियोंकी स्मरणशक्तिको हर लेती है। पवित्र एवं एकान्त स्थानमें रहनेसे उसकी शान्ति होती है। सातवीं कन्या बीजहरा कहलाती है। यह अत्यन्त भयानक है। स्त्री- पुरुषोंके रज-वीर्यका अपहरण किया करती है। पवित्र अन्नके भोजन तथा नित्य स्नान करनेसे उसकी शान्ति होती है। आठवीं कन्या विद्वेषिणी है, जो सम्पूर्ण जगत् को भय देनेवाली है। यह स्त्री अथवा पुरुषको लोगोंका द्वेषपात्र बना देती है। उसकी शान्तिके लिये मधु, घृत, क्षीरमिश्रित तिलोंका हवन एवं मित्रविन्दा नामक यज्ञ करे। दक्ष प्रजापतिकी संतति तथा स्वायम्भुव सर्गका वर्णन मार्कण्डेयजी कहते हैं-भृगुसे उनकी पत्नी ख्यातिने धाता और विधाता नामक दो देवताओंको उत्पन्न किया। देवाधिदेव भगवान् नारायणकी धर्मपत्नी श्रीलक्ष्मीदेवी भी ख्यातिके ही गर्भसे प्रकट हुईं। महात्मा मेरुकी दो कन्याएँ थीं-आयति और नियति। ये ही धाता और विधाताकी पत्नियाँ हुईं। इन दोनोंसे दो पुत्र हुए-प्राण तथा मेरे महायशस्वी पिता मृकण्डु। श्रीमृकण्डुसे मेरा जन्म हुआ, मेरी माता मनस्विनी देवी थीं। मेरी पत्नी धूम्रवतीके गर्भसे मेरे पुत्र वेदशिराका जन्म हुआ। अब प्राणकी सन्तानका वर्णन सुनो। प्राणका पुत्र द्युतिमान् और द्युतिमान्का अजरा हुआ। उन दोनोंके बहुत-से पुत्र-पौत्र हुए।
मरीचिकी पत्नी सम्भूतिने पौर्णमासको उत्पन्न किया। महात्मा पौर्णमासके दो पुत्र हुए-विरजा और पर्वत। अङ्गिराकी पत्नी स्मृतिने चार कन्याओंको जन्म दिया। उनके नाम ये हैं-सिनीवाली, कुहू, राका तथा अनुमति। इसी प्रकार महर्षि अत्रिकी पत्नी अनसूयाने चन्द्रमा, दुर्वासा तथा योगी दत्तात्रेय-इन तीन पापरहित पुत्रोंको उत्पन्न किया। पुलस्त्यकी पत्नी प्रीतिसे दत्तोलि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो अपने पूर्वजन्ममें स्वायम्भुव मन्वन्तरमें 'अगस्त्य के नामसे प्रसिद्ध था। क्षमा प्रजापति पुलहकी पत्नी थी। उसने कर्दम, अर्ववीर और सहिष्णु-ये तीन पुत्र उत्पन्न किये। क्रतुकी पत्नी सन्नतिने साठ हजार बालखिल्य नामक ऊर्ध्वरेता महर्षियोंको उत्पन्न किया। वसिष्ठकी पत्नी ऊर्जाके गर्भसे सात पुत्र उत्पन्न हुए-रज, गात्र, ऊर्ध्वबाहु, सबल, अनघ, सुतपा और शुक्र। ये सभी सप्तर्षि हुए।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य