गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
ब्रह्मन् ! अग्नितत्त्वके अभिमानी देवता अग्नि ब्रह्माजीके प्रथम पुत्र थे। उनकी पत्नी स्वाहाने तीन पुत्र उत्पन्न किये, जो बड़े ही उदार और तेजस्वी हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-पावक, पवमान और शुचि। इनमें शुचि जलको सोखनेवाला है। इन तीनोंके वंशमें प्रत्येकके पंद्रह-पंद्रहके क्रमसे पैंतालीस पुत्र हुए। इनके साथ पिता अग्नि और उनके तीन पुत्रोंकी संख्या जोड़नेसे कुल उनचास अग्नि होते हैं। ये सब-के-सब दुर्जय माने जाते हैं। ब्रह्माजीके द्वारा उत्पन्न जो अग्निष्वात्त, बर्हिषद, अनग्निक और साग्निक पितर बतलाये गये हैं, उनसे स्वधाने दो कन्याओंको जन्म दिया, जिनके नाम थे-मेना और धारिणी। वे दोनों ही उत्तम ज्ञानसे सम्पन्न तथा सभी गुणोंसे सुशोभित, ब्रह्मवादिनी एवं योगिनी थीं। इस प्रकार यह दक्ष-कन्याओंकी वंश-परम्पराका वर्णन हुआ। जो श्रद्धापूर्वक इसका चिन्तन करता है, वह नि:सन्तान नहीं रहता।
क्रौष्टुकि बोले-भगवन्! आपने जो अभी स्वायम्भुव मन्वन्तरकी चर्चा की है, उसका वर्णन मैं अच्छी तरह सुनना चाहता हूँ। मन्वन्तरके कालमान, देवता, देवर्षि, राजा और इन्द्र-इन सबका वर्णन कीजिये।
मार्कण्डेयजीने कहा-ब्रह्मन्! मन्वन्तरकी अवधि इकहत्तर चतुर्युगीसे कुछ अधिक कालकी होती है, यह बात बतायी जा चुकी है। अब मानव-वर्षसे मन्वन्तरका कालमान सुनो। तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्षों का एक मन्वन्तर होता है। देवताओंके मानसे आठ लाख बावन हजार वर्षों का यह काल है। सबसे पहले मनु स्वायम्भुव हैं। इसके बाद स्वारोचिष, औत्तम, तामस, रैवत और चाक्षुष हैं। ये छः मनु बीत चुके हैं। इस समय वैवस्वत मनुका राज्य है। भविष्यमें सावर्णि नामवाले पाँच मनु, रौच्य मनु तथा भौम मनु-ये सात और होनेवाले हैं इनका विस्तृत वर्णन मन्वन्तरोंके प्रकरणमें करेंगे। ब्रह्मन्! इस समय मन्वन्तरोंके देवता, ऋषि, इन्द्र और पितरोंका परिचय देता हूँ तथा उनकी उत्पत्ति, संग्रह एवं संतानोंका भी वर्णन करता हूँ। साथ ही यह भी बतलाता हूँ कि मनु और उनके पुत्रोंके राज्यका क्षेत्र कितना था।
पहले स्वायम्भुव मन्वन्तरके प्रथम त्रेतायुगमें प्रियव्रतके पुत्रों अर्थात् स्वायम्भुव मनुके पौत्रोंने पृथ्वीके वर्ष-विभाग किये थे। प्रजापति कर्दमजीकी पुत्री प्रजावती राजा प्रियव्रतको ब्याही गयी थी, उसके गर्भसे दो कन्याएँ और दस पुत्र हुए। कन्याओंके नाम थे-सम्राट् और कुक्षि। उन दोनोंके दसों भाई प्रजापतिके समान तेजस्वी और बड़े शूरवीर थे। उनमें सातके नाम इस प्रकार हैं-आग्नीध्र, मेधातिथि, वपुष्मान्, ज्योतिष्मान्, धुतिमान्, भव्य और सवन। इनके सिवा मेधा, अग्निबाहु और मित्र-ये तीन और थे, जो तपस्या और योगमें तत्पर रहते थे। इन्हें अपने पूर्वजन्मके वृत्तान्तोंका स्मरण था। अतएव इन महाभाग्यशाली पुरुषोंने राज्य-भोगमें मन नहीं लगाया। राजा प्रियव्रतने शेष सातों पुत्रोंको सातों द्वीपोंके राजपदपर धर्मपूर्वक अभिषिक्त कर दिया। अब द्वीपोंका वर्णन सुनो।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य