लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

प्रियव्रतने जम्बूद्वीपमें आग्नीध्रको राजा बनाया। प्लक्षद्वीपका राज्य मेधातिथिको सौंपा। शाल्मलद्वीपमें वपुष्मान्को और कुशद्वीपमें ज्योतिष्मान्को राजा बनाया। द्युतिमान् क्रौञ्चद्वीपके, भव्य शाकद्वीपके तथा सवन पुष्करद्वीपके स्वामी बनाये गये।

पुष्करराज सवनके दो पुत्र हुए-महावीर और धातकि। उन्होंने पुष्करद्वीपको दो भागोंमें बाँटकर बसाया। भव्यके सात पुत्र थे, उनके नाम ये हैं- जलद, कुमार, सुकुमार, वनीयक, कुशोत्तर, मेधावी और महाद्रुम। उन्होंने अपने-अपने नामसे शाकद्वीपके सात खण्ड किये। द्युतिमान्के भी कुशल, मनुग, उष्ण, प्राकार, अर्थकारक, मुनि और दुन्दुभि-ये सात ही पुत्र थे। उनके नामसे क्रौञ्चद्वीपके सात खण्ड हुए। राजा ज्योतिष्मान्के कुशद्वीपमें भी उनके पुत्रोंके नामपर सात खण्ड बने, उनके नाम इस प्रकार हैं-उद्भिद, वैष्णव, सुरथ, लम्बन, धृतिमान्, प्रभाकर तथा कापिल।

शाल्मलद्वीपके स्वामी वपुष्मान्के भी सात पुत्र हुए-श्वेत, हरित, जीमूत, रोहित, वैद्युत, मानस और केतुमान्। इनके नामपर भी पूर्ववत् उक्त द्वीपके सात खण्ड बनाये गये। प्लक्षद्वीपके स्वामी मेधातिथिके भी सात ही पुत्र हुए और उनके नामसे प्लक्षद्वीपके भी सात खण्ड बन गये। उन खण्डोंके नाम इस प्रकार हैं-शाकभव, शिशिर, सुखोदय, आनन्द, शिव, क्षेमक तथा ध्रुव। प्लक्षद्वीपसे लेकर शाकद्वीपतकके पाँच द्वीपोंमें वर्णाश्रम-धर्म विभागपूर्वक स्थित है। वहाँ धर्मका सदा स्वाभाविक रूपसे पालन होता है। कभी किसी जीवकी हिंसा नहीं की जाती। उन पाँचों द्वीपों और उनके वर्षों में सब धर्म सामान्य रूपसे सर्वत्र प्रचलित हैं।

ब्रह्मन्! राजा प्रियव्रतने आग्नीध्रको जम्बूद्वीपका राज्य दिया था। उनके नौ पुत्र हुए, जो प्रजापतिके समान शक्तिशाली थे। उनमें सबसे बड़ेका नाम नाभि था, उससे छोटा किम्पुरुष था। तीसरेका नाम हरि, चौथेका इलावृत, पाँचवेंका रम्य, छठेका हिरण्यक, सातवेंका कुरु, आठवेंका भद्राश्व और नवेंका केतुमाल था। इन पुत्रोंके नामपर ही जम्बूद्वीपके नौ खण्ड हुए। हिमवर्षको छोड़कर शेष जो किम्पुरुष आदि वर्ष हैं, उनमें सुखकी अधिकता है और बिना यत्न किये स्वभावसे ही वहाँ सब कामनाओंकी सिद्धि होती है। उनमें किसी प्रकारके विपर्यय (असुख, अकाल मृत्यु आदि) तथा जरा-मृत्युका कोई भय नहीं है और न वहाँ धर्म-अधर्म अथवा उत्तम, मध्यम, अधम आदिका ही कोई भेद है। उन आठ वर्षों में न चार युगोंकी व्यवस्था है, न छ: ऋतुओंकी। वहाँ किसी विशेष ऋतुके कोई चिह्न नहीं दीख पड़ते। आग्नीध्रकुमार नाभिके पुत्र ऋषभ और ऋषभके भरत हुए, जो अपने सौ भाइयोंमें सबसे बड़े थे। ऋषभ अपने पुत्रको राज्य दे महाप्रव्रज्या (संन्यास) ग्रहण करके तपस्या करने लगे। वे महर्षि पुलहके आश्रममें ही रहते थे। उन्होंने हिम नामक वर्षको, जो सबसे दक्षिण है, अपने पुत्र भरतको दिया था; इसलिये महात्मा भरतके नामपर इसका नाम भारतवर्ष हो गया।

भरतके पुत्र सुमति हुए, जो बड़े धर्मात्मा थे। भरतने उनको राज्य देकर वनका आश्रय लिया। राजा प्रियव्रतके पुत्रों तथा उनके भी पुत्र-पौत्रोंने स्वायम्भुव मन्वन्तरमें सात द्वीपोंवाली पृथ्वीका उपभोग किया। द्विजश्रेष्ठ! यह मैंने तुम्हें स्वायम्भुव मन्वन्तरकी सृष्टि बतलायी अब और क्या सुनाऊँ?

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai