लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

मार्कण्डेयजी कहते हैं-स्वरोचिष् ने 'बहुत अच्छा' कहकर मनोरमाकी प्रार्थना स्वीकार की। फिर मनोरमाने आचमन करके रहस्य एवं उपसंहार-विधिके सहित वह सम्पूर्ण अस्त्रोंका हृदय उन्हें दे दिया। इसी बीचमें भयानक आकारवाला वह राक्षस जोर-जोरसे गर्जना करता हुआ शीघ्रतापूर्वक वहाँ आ पहुँचा। आते ही उसने मनोरमाको पकड़ लिया। वह बेचारी बचाओ, बचाओ' कहती हुई करुणामयी वाणीमें विलाप करने लगी। तब स्वरोचिष् को बड़ा क्रोध हुआ और उसने अत्यन्त भयंकर प्रचण्ड अस्त्र हाथमें ले उसे धनुषपर चढ़ाकर एकटक नेत्रोंसे राक्षसकी ओर देखा। यह देख वह निशाचर भयसे व्याकुल हो उठा और मनोरमाको छोड़कर विनीत भावसे बोला-'वीरवर! मुझपर प्रसन्न होइये, इस अस्त्रको शान्त कीजिये और मेरी बात सुनिये। आज आपने परम बुद्धिमान् ब्रह्ममित्रके दिये हुए अत्यन्त भयंकर शापसे मेरा उद्धार कर दिया। महाभाग! आपसे बढ़कर दूसरा कोई मेरा उपकारी नहीं है।'

स्वरोचिष् ने पूछा-महात्मा ब्रह्ममित्र मुनिने तुम्हें किस कारणसे और कैसा शाप दिया था?

राक्षस बोला-ब्रह्ममित्र मुनि आठों अङ्गोंसे युक्त आयुर्वेदके ज्ञाता हैं। उन्होंने अथर्ववेदके तेरहवें अधिकारतकका ज्ञान प्राप्त किया है। मैं इस मनोरमाका पिता और खड्गधारी विद्याधरराज नलनाभका पुत्र इन्दीवराक्ष हूँ। पूर्वकालमें एक दिन मैंने ब्रह्ममित्र मुनिके पास जाकर प्रार्थना की-'भगवन् ! मुझे सम्पूर्ण आयुर्वेद शास्त्रका ज्ञान प्रदान कीजिये।' अनेकों बार विनीत भावसे प्रार्थना करनेपर भी जब उन्होंने मुझे आयुर्वेदकी शिक्षा नहीं दी, तब मैंने दूसरे उपायका अवलम्बन किया। जिस समय वे दूसरे विद्यार्थियोंको आयुर्वेद पढ़ाते, उस समय मैं भी अदृश्य रहकर वह विद्या सीखा करता। जब शिक्षा पूरी हो गयी, तब मुझे बड़ा हर्ष हुआ और मैं बार-बार हँसने लगा।

हँसनेकी आवाज सुनकर मुनि मुझे पहचान गये और क्रोधसे गर्दन हिलाते हुए कठोर वचनोंमें बोले-'खोटी बुद्धिवाले विद्याधर! तूने राक्षसकी भाँति अदृश्य होकर मुझसे विद्याका अपहरण किया है और मेरी अवहेलना करके हँसी उड़ायी है, इसलिये मेरे शापसे तू राक्षस हो जा।' उनके यों कहनेपर मैंने प्रणाम आदिके द्वारा उन्हें प्रसन्न किया। तब वे कोमल हृदयवाले ब्राह्मण मुझसे इस प्रकार बोले-'विद्याधर ! मैंने जो बात कही है, वह अवश्य होगी, टल नहीं सकती। किन्तु तुम राक्षस होकर पुनः अपने स्वरूपको प्राप्त कर लोगे। निशाचरावस्थामें स्मरण-शक्तिके नष्ट हो जानेपर क्रोधके वशीभूत हो जब तुम अपनी ही संतानको खा डालनेकी इच्छा करोगे, उस समय प्रचण्ड अस्त्रके तेजसे संतप्त होनेपर तुम्हें फिरसे चेत हो जायगा और पूर्ववत् अपने शरीरको धारण करके गन्धर्वलोकमें निवास करोगे।' महाभाग! मैं वही हूँ, आपने महान् भयदायी राक्षस-देहसे मेरा उद्धार किया है, अत: मेरी एक प्रार्थना स्वीकार कीजिये। मैं अपनी पुत्री मनोरमाको आपकी सेवामें दे रहा हूँ। इसे पत्नीरूपमें ग्रहण करें। महामते! ब्रह्ममित्र मुनिसे सम्पूर्ण अष्टाङ्ग आयुर्वेदका जो मैंने अध्ययन किया है, वह सब आपको देता हूँ, स्वीकार करें।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai