गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
मार्कण्डेयजी कहते हैं-यों कहकर विद्याधरने अपने पूर्व रूपको धारण कर लिया। दिव्य वस्त्र, दिव्य माला और दिव्य आभूषण उसकी शोभा बढ़ाने लगे। फिर उसने स्वरोचिषको आयुर्वेद- विद्या प्रदान की और उसकी सेवामें अपनी कन्या सौंप दी। तदनन्तर स्वरोचिष् ने पिताद्वारा दी हुई मनोरमाके साथ विधिपूर्वक विवाह किया। इसके बाद इन्दीवराक्ष पुत्रीको सान्त्वना दे दिव्य गतिसे अपने लोकको चला गया। फिर स्वरोचिष् अपनी सुन्दरी पत्नीके साथ उस उद्यानमें गया, जहाँ उसकी दोनों सखियाँ मुनिके शापवश रोगसे व्याकुल थीं। अब वह आयुर्वेदके तत्त्वोंका ज्ञाता हो चुका था; अतः रोगनाशक औषधों और रसोंका प्रयोग करके उसने उन दोनोंको रोगमुक्त कर दिया। व्याधिसे छुटकारा पानेपर वे दोनों सुन्दरी कन्याएँ अपने शरीरकी दिव्य कान्तिसे हिमालय पर्वतके उस रम्य प्रदेशको प्रकाशित करने लगीं।
इस प्रकार रोग-मुक्त हुई कन्याओंमेंसे एकने स्वरोचिषसे प्रसन्नतापूर्वक कहा-'प्रभो! मेरी बात सुनिये। मैं मन्दार विद्याधरकी पुत्री हूँ। मेरा नाम विभावरी है। उपकारी पुरुष! मैं अपनेको आपकी सेवामें दे रही हूँ, स्वीकार कीजिये। साथ ही आपको एक ऐसी विद्या दूंगी, जिससे सब जीवोंकी बोली आपकी समझमें आने लगेगी; अतः आप मुझपर कृपा करें।' धर्मज्ञ स्वरोचिष् ने 'एवमस्तु' कहकर उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। तब दूसरी कन्या इस प्रकार बोली-'आर्य! वेद-वेदाङ्गोंके पारंगत विद्वान् ब्रह्मर्षि पार मेरे पिता हैं। कुमारावस्थासे ही ब्रह्मचर्यका पालन करनेके कारण उन्होंने विवाह नहीं किया था। एक बार पुञ्जिकस्थला नामक अप्सरासे उनका सम्पर्क हो गया। इससे मेरा जन्म हुआ। मेरी माता इस निर्जन वनमें मुझे धरतीपर सुला अकेली छोड़कर चली गयी। फिर एक महात्मा गन्धर्वने मुझे ले लिया और स्नेहपूर्वक लालन-पालन किया। एक बार देव-शत्रु अलिने मेरे पालक पितासे मुझे माँगा, किन्तु उन्होंने देनेसे इन्कार कर दिया। तब उस राक्षसने सोये हुए मेरे पिताको मार डाला। इस दुर्घटनासे मुझे बड़ा दुःख हुआ और मैं आत्महत्या करनेको तैयार हो गयी। उस समय भगवान् शङ्करकी धर्मपत्नी सत्यवादिनी सतीदेवीने मुझे ऐसा करनेसे रोका और कहा-'सुन्दरी! तू शोक मत कर। महाभाग स्वरोचिष् तेरे पति होंगे। उनका पुत्र मनु होगा। सब प्रकारकी निधियाँ आदरपूर्वक तेरी आज्ञाका पालन करेंगी और तुझे इच्छानुसार धन देंगी। वत्से! जिस विद्याके प्रभावसे तुझे वे निधियाँ प्राप्त होंगी, उसे तू मुझसे ग्रहण कर। यह महापद्मपूजित पद्मिनी नामकी विद्या है।' सत्यपरायणा दक्षकन्या सतीने मुझसे ऐसा ही कहा था। निश्चय ही आप स्वरोचिष् हैं। आज मैं अपने प्राणदाताको वह विद्या और यह शरीर अर्पण करती हूँ। आप प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार करें।'
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य