गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
इसी बीचमें महातपस्वी विश्वामित्रजी भी आ धमके। उन्होंने राजा हरिश्चन्द्रको मूर्च्छित होकर भूमिपर पड़ा देख उनपर जल के छीटें डाले और इस प्रकार कहा-'राजेन्द्र! उठो, उठो। यदि तुम्हारी दृष्टि धर्मपर हो तो मुझे पूर्वोक्त दक्षिणा दे दो। सत्यसे ही सूर्य तप रहा है। सत्यपर ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य- भाषण सबसे बड़ा धर्म है। सत्यपर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है। एक हजार अश्वमेध और एक सत्य को यदि तराजू पर तोला जाय तो हजार अश्वमेधसे सत्य ही भारी सिद्ध होगा।*
अग्निहोत्रमधीतं वा दानाद्याश्चाखिलाः क्रियाः।
भजन्ते तस्य वैफल्यं यस्य वाक्यमकारणम्॥
सत्यमत्यन्तमुदितं धर्मशास्त्रेषु धीमताम्।
तारणायानृतं तद्वत् पातनायाकृतात्मनाम्॥
(अ० ८। १७-२०)
*सत्येनार्कः प्रतपति सत्ये तिष्ठति मेदिनी।
सत्यं चोक्तं परो धर्मः स्वर्गः सत्ये प्रतिष्ठितः॥
अश्वमेधसहस्रं च सत्यं च तुलया धृतम्।
अश्वमेधसहस्राद्धि सत्यमेव विशिष्यते॥
(अ० ८। ४१-४२)
राजन् ! यदि आज तुम मुझे दक्षिणा न दोगे तो सूर्यास्त होनेपर तुम्हें निश्चय ही शाप दे दूंगा।' इतना कहकर विश्वामित्र चले गये। इधर राजा हरिश्चन्द्र उनके भय से व्याकुल हो उठे। सोचने लगे- 'हाय! मैं अधम कहाँ भागकर जाऊँ।' उनकी दशा क्रूर स्वभाववाले धनीसे पीड़ित निर्धन पुरुष की-सी हो रही थी। उस समय उनकी पत्नीने फिर कहा- 'नाथ! मेरी बात मानकर वैसा ही कीजिये, अन्यथा आपको शापाग्नि से दग्ध होकर मरना पड़ेगा।' जब पत्नीने बार-बार उन्हें प्रेरित किया, तब राजा बोले-'कल्याणी! मैं बड़ा निर्दयी हूँ। लो, अब तुम्हें बेचने चलता हूँ। क्रूर-से-क्रूर मनुष्य भी जो कार्य नहीं कर सकते, वही आज मैं करूँगा।' पत्नी से यों कहकर राजा व्याकुलचित्त से नगर में गये और नेत्रोंसे आँसू बहाते हुए गद्गदकण्ठ से बोले।
राजाने कहा- ओ नागरिको! तुम सब लोग मेरी बात सुनो, क्या तुम मेरा परिचय पूछ रहे हो? लो, सुनो, मैं मनुष्य नहीं, अत्यन्त क्रूर प्राणी हूँ; क्योंकि अपनी प्राणप्यारी पत्नी को यहाँ बेचने के लिये आया हूँ। यदि आपलोगों में से किसीको मेरी इस प्राणोंसे भी बढ़कर प्रियतमा पत्नी से दासी का काम लेनेकी आवश्यकता हो तो वह शीघ्र बोले; इस असह्य दुःखमें भी जबतक मैं जीवन धारण किये हुए हूँ, तभीतक बात कर ले।
तदनन्तर कोई बूढ़ा ब्राह्मण सामने आकर राजासे बोला- 'दासीको मेरे हवाले करो। मैं इसे धन देकर खरीदता हूँ। मेरे पास धन बहुत है और मेरी प्यारी पत्नी अत्यन्त सुकुमारी है। वह घरके काम-काज नहीं कर सकती। इसलिये यह दासी मुझे दे दो। तुम अपनी इस पत्नी की कार्यदक्षता, अवस्था, रूप और स्वभावके अनुरूप यह धन लो और इसे मेरे हवाले करो।'
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य