गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
ब्राह्मणके ऐसा कहनेपर राजा हरिश्चन्द्रका हृदय दुःखसे विदीर्ण हो गया। वे उसे कोई उत्तर न दे सके। तब उस ब्राह्मणने राजाके वल्कल-वस्त्रमें उस धनको अच्छी तरह बाँध दिया और उनकी पत्नीको खींचकर वह अपने साथ ले चला। माताको इस दशामें देखकर बालक रोहिताश्व रो उठा और हाथसे उसका वस्त्र पकड़कर अपनी ओर खींचने लगा। उस समय रानीने अपने पुत्रसे कहा- 'बेटा! आओ, जी भरकर देख लो। तुम्हारी माता अब दासी हो गयी। तुम राजपुत्र हो, मेरा स्पर्श न करो। अब मैं तुम्हारे स्पर्श करने योग्य न रही।' फिर सहसा अपनी माताको खींचकर ले जाये जाते हुए देख बालक रोहिताश्व 'माँ, माँ' कहकर रोता हुआ दौड़ा। उस समय उसके नेत्रों से आँसू बह रहे थे। जब बालक पास आया, तब उस ब्राह्मणने क्रोधमें भरकर उसे लातसे मारा तो भी उसने अपनी माँको नहीं छोड़ा। केवल 'माई, माई' कहकर विलखता रहा। तब रानीने ब्राह्मणसे कहा- स्वामिन्! आप मुझपर कृपा कीजिये। इस बालक को भी खरीद लीजिये। यद्यपि आपने मुझे खरीद लिया है, तथापि इस बालक के बिना मैं आपके कार्य को अच्छी तरह नहीं कर सकती। मैं बड़ी अभागिनी हूँ। आप मुझपर दया करके प्रसन्न हों और बछड़े से गाय की तरह इस बालक से मुझे मिलाइये।
ब्राह्मण बोला-राजन् ! यह धन लो और इस बालकको भी मेरे हवाले करो।
यों कहकर उसने पूर्ववत् राजाके उत्तरीय- खण्डमें वह धन बाँध दिया और बालकको उसकी माताके साथ लेकर चल दिया। इस प्रकार पत्नी और पुत्रको ले जाये जाते देख राजा हरिश्चन्द्र अत्यन्त दुःखसे कातर हो गये और विलाप करने लगे- 'हाय! पहले जिसे वायु, सूर्य, चन्द्रमा तथा बाहरी लोग कभी नहीं देख पाते थे, वही मेरी पत्नी आज दासी बन गयी। जिसके हाथोंकी अंगुलियाँ अत्यन्त सुकुमार हैं, वह सूर्यवंश में उत्पन्न मेरा बालक आज बेच दिया गया। हा प्रिये! हा पुत्र!! हा वत्स!!! मुझ नीचके अन्याय से तुम्हें दैवाधीन दशाको प्राप्त होना पड़ा। फिर भी मेरी मृत्यु नहीं होती-मुझे धिक्कार है।'
राजा हरिश्चन्द्र इस प्रकार विलाप कर रहे थे, इतने में ही वह ब्राह्मण उन दोनोंको साथ ले ऊँचे-ऊँचे वृक्ष और गृह आदिकी ओटमें छिप गया। वह बड़ी शीघ्रतासे चल रहा था। तदनन्तर विश्वामित्रने वहाँ पहुँचकर राजासे धन माँगा। हरिश्चन्द्रने भी वह धन उन्हें समर्पित कर दिया। पत्नी और पुत्रको बेचनेसे प्राप्त हुए उस धनको थोड़ा देखकर कौशिक मुनिने शोकाकुल राजासे कुपित होकर कहा- 'क्षत्रियाधम! क्या तू इसीको मेरे यज्ञके अनुरूप दक्षिणा मानता है? यदि ऐसी बात है तो मेरे महान् बलको देख। अपनी भलीभाँति की हुई तपस्या का, निर्मल ब्राह्मणत्वका, उग्र प्रभावका तथा विशुद्ध स्वाध्याय का बल तुझे दिखाता हूँ।'
हरिश्चन्द्रने कहा- भगवन् ! कुछ काल और प्रतीक्षा कीजिये और भी दक्षिणा दूंगा। इस समय नहीं है। मेरी पत्नी और पुत्र बिक चुके हैं।
विश्वामित्रने कहा- राजन् ! दिन का चौथा भाग शेष है। इतने ही समय तक मुझे प्रतीक्षा करनी है। बस, इसके उत्तरमें तुम्हें कुछ कहनेकी आवश्यकता नहीं है।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य