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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

राजा हरिश्चन्द्रसे इस प्रकार निर्दयतापूर्ण निष्ठुर वचन कहकर और उस धनको लेकर कोपमें भरे हुए विश्वामित्र तुरंत वहाँसे चल दिये। उनके जानेपर राजा भय और शोकके समुद्रमें डूब गये; उन्होंने सब प्रकार विचार करके अपना कर्तव्य निश्चित किया और नीचा मुँह करके आवाज लगायी- 'जो मनुष्य मुझे धनसे खरीदकर दास का काम लेना चाहता हो, वह सूर्य के रहते-रहते शीघ्र ही बोले।'

उसी समय धर्म चाण्डालका रूप धारण करके तुरंत वहाँ आये। उस चाण्डालके शरीरसे दुर्गन्ध निकल रही थी। विकृत आकार, रूखा बदन, दाढ़ी-मूंछे बढ़ी हुई और दाँत थे। निर्दयताकी तो वह मूर्ति ही था। काला रंग, लंबा पेट, पीलापन लिये हुए रूखे नेत्र और कठोर वाणी-यही उसकी हुलिया थी। उसने झुंड-के-झुंड पक्षियोंको पकड़ रखा था। मुर्दोपर चढ़ी हुई मालाओंसे वह अलङ्कृत था। उसने एक हाथमें खोपड़ी और दूसरेमें लाठी ले रखी थी। उसका मुँह बहुत बड़ा था। वह देखने में भयानक तथा बारंबार बहुत बकवाद करनेवाला था। कुत्तोंसे घिरे होनेके कारण उसकी भयंकरता और भी बढ़ गयी थी।

चाण्डाल बोला- मुझे तुम्हारी आवश्यकता है। तुम शीघ्र ही अपनी कीमत बताओ। थोड़े अथवा बहुत, जितने धनसे तुम प्राप्त हो सको, उसे कहो।

चाण्डालकी दृष्टिसे क्रूरता टपक रही थी। वह बड़ी निष्ठुरताके साथ बातें करता था। देखनेसे अत्यन्त दुराचारी प्रतीत होता था। इस रूपमें उसे देखकर राजाने पूछा-'तू कौन है ?'

चाण्डालने कहा- मैं चाण्डाल हूँ। इस श्रेष्ठ नगरी में मुझे सब लोग प्रवीर के नाम से पुकारते हैं। मैं वध्य मनुष्यों का वध करनेवाला और मुर्दोका वस्त्र लेनेवाला प्रसिद्ध हूँ।

हरिश्चन्द्र बोले- मैं चाण्डालका दास होना नहीं चाहता। वह बहुत ही निन्दित कर्म है। शापाग्निसे जल मरना अच्छा, किन्तु चाण्डालके अधीन होना कदापि अच्छा नहीं है।

वे इस प्रकार कह ही रहे थे कि महान् तपस्वी विश्वामित्र मुनि आ पहुँचे और क्रोध एवं अमर्ष से आँखें फाड़कर राजासे बोले- 'यह चाण्डाल तुम्हें बहुत-सा धन देने के लिये उपस्थित है। उसे ग्रहण करके मुझे यज्ञकी पूरी दक्षिणा क्यों नहीं देते? यदि तुम चाण्डालके हाथ अपनेको बेचकर उससे मिला हुआ धन मुझे नहीं दोगे, तो मैं निःसन्देह तुम्हें शाप दे दूंगा।'

हरिश्चन्द्रने कहा- ब्रह्मर्षे! मैं आपका दास हूँ, दुःखी हूँ, भयभीत हूँ और विशेषत: आपका भक्त हूँ। आप मुझपर कृपा करें। चाण्डालका सम्पर्क बड़ा ही निन्दनीय है। मुनिश्रेष्ठ! शेष धनके बदले मैं आपका ही सब कार्य करनेवाला, आपके अधीन रहनेवाला तथा आपकी इच्छाके अनुसार चलनेवाला दास बनकर रहूँगा।

विश्वामित्र बोले- यदि तुम मेरे दास हो तो मैंने एक अरब स्वर्णमुद्रा लेकर तुम्हें चाण्डाल को दे दिया। अब तुम उसके दास हो गये।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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