गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
मुनिके ऐसा कहनेपर चाण्डाल मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हुआ। उसने विश्वामित्रको धन देकर राजाको बाँध लिया और उन्हें डंडोंकी मारसे अचेत-सा करता हुआ वह अपने घरकी ओर ले चला। उस समय राजाकी इन्द्रियाँ अत्यन्त व्याकुल हो गयी थीं। तदनन्तर राजा हरिश्चन्द्र चाण्डालके घरमें रहने लगे। वे प्रतिदिन सबेरे, दोपहर और शामको निम्नाङ्कित बातें गुनगुनाया करते थे। 'हाय! मेरी दीनमुखी पत्नी अपने आगे दीनमुख बालक रोहिताश्वको देखकर अत्यन्त दु:खमें मग्न हो जाती होगी और उस समय इस आशासे कि राजा धन कमाकर हम दोनोंको छुड़ायेगे, बारंबार मेरा स्मरण करती होगी। उसे इस बातका पता न होगा कि मैं ब्राह्मणको और भी अधिक धन देकर अत्यन्त पापमय संसर्गमें जीवन व्यतीत कर रहा हूँ राज्यका नाश, सुहृदोंका त्याग, पत्नी और पुत्रका विक्रय तथा अन्तमें चाण्डालत्व की प्राप्ति- अहो! यह एकके बाद एक दुःखकी कैसी परम्परा चली आती है।'
इस प्रकार वे चाण्डालके घरमें रहते हुए प्रतिदिन अपने प्रिय पुत्र तथा अनुकूल पत्नीका स्मरण किया करते थे। अपना सर्वस्व छिन जानेके कारण राजा बहुत व्याकुल रहते थे। कुछ कालके बाद राजा हरिश्चन्द्र चाण्डालके वशमें होनेके कारण श्मशानघाटपर मुर्दोके कपड़े (कफन) संग्रह करनेके काममें नियुक्त हुए। चाण्डालने उन्हें आज्ञा दी थी कि 'तुम मुर्दोके आनेकी प्रतीक्षामें रात-दिन यहीं रहो।' यह आदेश पाकर राजा काशीपुरीके दक्षिण श्मशान-भूमिमें बने हुए शवमन्दिरमें गये। उस श्मशानमें बड़ा भयङ्कर शब्द होता था। वहाँ सैकड़ों सियारिनें भरी रहती थीं। चारों ओर मुर्दोकी खोपड़ियाँ बिखरी पड़ी थीं। सारा श्मशान दुर्गन्धसे व्याप्त और अत्यन्त धूमसे आच्छादित था। उसमें पिशाच, भूत, वेताल, डाकिनी और यक्ष रहा करते थे। गिद्धों और गीदड़ोंसे भी वह स्थान भरा रहता था। झुंड-के- झुंड कुत्ते उसे घेरे रहते थे। यत्र-तत्र हड्डियोंके ढेर लगे हुए थे। सब ओरसे बड़ी दुर्गन्ध आती थी। अनेकों मृत व्यक्तियोंके बन्धु-बान्धवोंके करुण-क्रन्दनसे वह श्मशान-भूमि बड़ी ही भयानक और कोलाहलपूर्ण रहती थी। 'हा पुत्र! हा मित्र! हा बन्धु! हा भ्राता! हा वत्स! हा प्रियतम! हा पतिदेव! हाय बहिन! हा माता! हा मामा! हा पितामह ! हा मातामह! हा पिताजी! हा पौत्र! हा बान्धव! तुम कहाँ चले गये? लौट आओ।' इस प्रकार विलाप करनेवालोंकी करुणापूर्ण ध्वनि वहाँ जोर-जोरसे सुनायी पड़ती थी। ऐसी भूमिमें निवास करनेके कारण राजा न रातमें सो पाते थे, न दिनमें। बारंबार हाहाकार करते रहते थे। इस प्रकार उनके बारह महीने सौ वर्षोंके समान बीते। अन्तमें राजाने दुःखी होकर देवताओंकी शरण ली और कहा- 'महान् धर्मको नमस्कार है। जो सच्चिदानन्दस्वरूप, सम्पूर्ण जगत् की सृष्टि करनेवाले विधाता, परात्पर ब्रह्म, शुद्ध, पुराणपुरुष एवं अविनाशी हैं, उन भगवान् विष्णुको नमस्कार है। देवगुरु बृहस्पति! तुम्हें नमस्कार है। इन्द्रको भी नमस्कार है।' यों कहकर राजा पुनः चाण्डालके कार्य में लग गये।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य