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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

तदनन्तर महाराज हरिश्चन्द्रकी पत्नी शैब्या साँपके काटनेसे मरे हुए अपने बालकको गोदमें उठाये विलाप करती हुई श्मशान-भूमिमें आयी। वह बार-बार यही कहती थी, 'हा वत्स! हा पुत्र! हा शिशो!' उसका शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया था। कान्ति मलिन पड़ गयी थी। मन बेचैन था। सिरके बालोंमें धूल जम गयी थी। शैब्याके विलापका शब्द सुनकर राजा हरिश्चन्द्र तुरंत उसके पास गये। उन्हें आशा थी, वहाँ भी मुर्देके शरीरका कफन मिलेगा। वे जोर-जोरसे रोती हुई अपनी पत्नीको पहचान न सके। अधिक कालतक प्रवासमें रहनेके कारण वह बहुत सन्तप्त थी। ऐसी जान पड़ती थी, मानो उसका दूसरा जन्म हुआ हो। शैब्याने भी पहले उनके मस्तकको मनोहर केशोंसे सुशोभित देखा था। अब उनके सिरपर जटा थी। वे सूखे हुए वृक्षके समान जान पड़ते थे। इस अवस्थामें वह भी अपने पतिको न पहचान सकी। राजाने काले कपड़ेमें लिपटे हुए बालकको, जिसे साँपने काट खाया था तथा जिसके अङ्गोंमें राजोचित चिह्न दिखायी देते थे, जब देखा तो उन्हें बड़ी चिन्ता हुई। वे सोचने लगे- 'अहो! बड़े कष्टकी बात है, यह बालक किसी राजाके कुलमें उत्पन्न हुआ था; किन्तु दुरात्मा कालने इसे किसी और ही दशाको पहुँचा दिया। अपनी माताकी गोदमें पड़े हुए इस बालकको देखकर मुझे कमलके समान नेत्रोंवाला अपना पुत्र रोहिताश्व याद आ रहा है। यदि उसे भयंकर कालने अपना ग्रास न बनाया होगा तो वह मेरा लाड़ला भी इसी उम्रका हुआ होगा।'

इतने में ही रानीने विलाप करते हुए कहा हा वत्स! किस पापके कारण यह अत्यन्त भयंकर दु:ख आ पड़ा है, जिसका कभी अन्त ही नहीं आता। हा प्राणनाथ! आप कहाँ हैं? ओ विधाता! तूने राज्यका नाश किया, सुहृदोंसे विछोह कराया और स्त्री तथा पुत्रको भी बिकवा दिया। अरे! तूने राजर्षि हरिश्चन्द्रकी कौन-सी दुर्दशा नहीं की।

रानीका यह वचन सुनकर अपने पथसे भ्रष्ट हुए राजा हरिश्चन्द्रने अपनी प्राणप्यारी पत्नी तथा मृत्युके मुखमें पड़े हुए पुत्रको पहचान लिया। ओह! कितने कष्टकी बात है, यह शैब्या इस अवस्थामें और यह वही मेरा पुत्र है?' यों कहते हुए वे दुःखसे सन्तप्त होकर रोते-रोते मूर्च्छित हो गये। इस अवस्थामें पहुँचे हुए राजाको पहचानकर रानीको भी बड़ा दुःख हुआ। वह भी मूर्च्छित होकर धरतीपर गिर पड़ी। उसका शरीर निश्चेष्ट हो गया। फिर थोड़ी देर बाद होशमें आनेपर महाराज और महारानी दोनों साथ-ही-साथ शोकके भारसे पीड़ित एवं सन्तप्त हो विलाप करने लगे।

राजाने कहा- हा वत्स! सुन्दर नेत्र, भौंह, नासिका और बालोंसे युक्त तुम्हारा यह सुकुमार एवं दीन मुख देखकर मेरा हृदय क्यों नहीं विदीर्ण हो जाता। हा बेटा! तुम मेरे अङ्ग-प्रत्यङ्गसे उत्पन्न तथा मन और हृदयको आनन्द देनेवाले थे, किन्तु मुझ-जैसे दुष्ट पिताने तुम्हें एक साधारण वस्तुकी भाँति बेच डाला। हाय! दुर्दैवरूपी क्रूर सर्पने सब प्रकारके साधन और वैभवसे पूर्ण मेरे महान् राज्यका अपहरण करके अब मेरे पुत्रको भी काट खाया। दैवरूपी सर्पसे डसे हुए अपने पुत्रके मुख-कमलको देखते हुए भी मैं इस समय उसीके भयंकर विषके प्रभावसे अंधा हो रहा हूँ।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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