गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
उस राजकुमारका अत्यन्त निश्चित विचार देख विशालने व्याकुल होकर अपनी कन्यासे कहा-'बेटी! अब तुम इनकी ओरसे अपना मन हटा लो और दूसरेको पतिरूपमें वरण करो। यहाँ बहुत-से राजकुमार हैं।'
कन्या बोली-पिताजी! यदि ये मुझको नहीं ग्रहण करना चाहते तो मैं तपस्या करके इन्हें अपना पति बनाऊँगी। इस जन्ममें इनके सिवा दूसरा कोई मेरा पति नहीं होगा।
तदनन्तर राजा करन्धम राजा विशालके साथ प्रसन्नतापूर्वक तीन दिनोंतक टिके रहे, फिर अपने नगरको लौट आये। अवीक्षितको उनके पिता तथा अन्य राजाओंने प्राचीन दृष्टान्तोंके द्वारा बहुत कुछ समझाया। इससे वे भी उनके साथ नगरमें लौट आये। राजकन्या वैशालिनी अपने बन्धु-बान्धवोंसे विदा ले वनमें चली गयी और वहाँ दृढ़ वैराग्यमें स्थित हो निराहार रहकर तपस्या करने लगी। तीन महीनोंतक उपवास करनेके बाद उसको बड़ी पीड़ा हुई। वह अत्यन्त दुबली हो गयी और उसके शरीरकी एक-एक नाड़ी दिखायी देने लगी। उसका उत्साह मन्द पड़ गया। वह मरणासन्न हो चली। तब उस राजकुमारीने शरीर त्याग देनेका विचार किया। उसका अभिप्राय जानकर देवताओंने उसके पास एक दूत भेजा। दूतने वहाँ आकर कहा-'राजकुमारी ! मैं देवताओंका दूत हूँ। देवताओंने तुम्हारे पास मुझे जिस कार्यके लिये भेजा है, उसे सुनो। यह मानव-शरीर अत्यन्त दुर्लभ है। तुम अकारण इसका परित्याग न करो। कल्याणी! तुम चक्रवर्ती राजाकी जननी होओगी। तुम्हारा पुत्र अपने शत्रुओंका संहार करके सात द्वीपोंसे युक्त पृथ्वीका अखण्ड राज्य भोगेगा। कहीं भी उसकी आज्ञाका उल्लङ्घन न होगा। वह चारों वर्गों को अपने-अपने धर्ममें स्थापित करके उन सबका पालन करेगा। लुटेरों, म्लेच्छों और दुष्टोंका वध करेगा। उत्तम दक्षिणाओंसे पूर्ण नाना प्रकारके यज्ञ करेगा। उसके द्वारा अश्वमेध आदि यज्ञोंका छ: हजार बार अनुष्ठान होगा।'
वह दूत आकाशमें ही खड़ा था। उसके शरीरपर दिव्य हार और चन्दन शोभा पा रहे थे। उसे इस रूपमें देख राजकन्याने कोमल वाणीमें कहा-'तुम देवताओंके दूत हो, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं। सचमुच ही तुम स्वर्गसे यहाँ आये हो; किन्तु तुम्हीं बताओ, पतिके बिना मुझे पुत्र कैसे होगा? मैंने पिताके समीप यह प्रतिज्ञा कर ली है कि इस जन्ममें अवीक्षितके सिवा दूसरा कोई पुरुष मेरा पति नहीं होगा; किन्तु वे अवीक्षित मेरे पिताके, अपने पिताके तथा स्वयं मेरे कहनेपर भी मुझे नहीं ग्रहण करना चाहते।'
देवदूतने कहा-'महाभागे! बहुत कहनेसे क्या लाभ है। तुम्हें पुत्र अवश्य होगा। तुम अधर्मपूर्वक इस शरीरका त्याग न करो। इसी वनमें रहो और अपने दुर्बल शरीरका पोषण करो। तपस्याके प्रभावसे तुम्हारा सब कुछ भला ही होगा।
यों कहकर देवदूत जैसे आया था, लौट गया तथा वह सुन्दरी प्रतिदिन अपने शरीरका पोषण करने लगी।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य