गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
उधर अवीक्षितकी वीरप्रसविनी माता वीराने किसी शुभ दिनको अपने पुत्र अवीक्षितको पास बुलाया और इस प्रकार कहा-'बेटा! मैं तुम्हारे पिताकी आज्ञासे एक व्रत करूँगी। उसका नाम किमिच्छक व्रत है, किन्तु वह है बहुत दुष्कर। फिर भी उसके करनेसे कल्याण ही होगा। यदि तुम कुछ बल और पराक्रम दिखाओ तो वह अवश्य साध्य हो जायगा। तुम्हारे लिये वह असाध्य हो या दुःसाध्य, यदि तुम उसके लिये प्रतिज्ञा कर लोगे तो मैं उसका अनुष्ठान आरम्भ कर दूंगी। अब तुम्हारा जो विचार हो, सो कहो।'
अवीक्षित बोले-माँ! यदि पिताजीने तुम्हें आज्ञा दे दी है तो तुम निश्चिन्त होकर किमिच्छक व्रतका अनुष्ठान करो। मनमें किसी प्रकारकी चिन्ता न करो।
तदनन्तर महारानी वीराने उपवासपूर्वक उस व्रतका आरम्भ किया तथा शास्त्रोंमें बताये अनुसार कुबेरकी, सम्पूर्ण निधियोंकी, निधिपालगणकी और लक्ष्मीजीकी बड़ी भक्तिके साथ पूजा की। उन्होंने अपने मन, वाणी और शरीरको काबूमें कर लिया था। इधर महाराज करन्धम जब एकान्त घरमें बैठे हुए थे, उस समय नीति- शास्त्र-विशारद मन्त्रियोंने उनके पास जाकर कहा-'राजन्! इस पृथ्वीका शासन करते हुए आपकी वृद्धावस्था आ गयी। आपके एक ही पुत्र हैं अवीक्षित, जिन्होंने स्त्रीका सम्पर्क ही छोड़ दिया है। इससे आपका वंश अब लुप्त हो जायगा। पितरोंको पिण्ड और पानी देनेवाला कोई नहीं रहेगा। अत: आप ऐसा कोई यत्न कीजिये, जिससे आपका पुत्र पितरोंका उपकार करनेवाली बुद्धि ग्रहण करे-विवाह करनेपर राजी हो जाय।'
इसी समय राजा करन्धमके कानोंमें एक आवाज आयी। रानी वीराके पुरोहित याचकोंसे कह रहे थे, 'कौन क्या चाहता है ? किसके लिये कौन-सी वस्तु दुःसाध्य है, जिसका साधन किया जाय? महाराज करन्धमकी रानी किमिच्छक व्रतका अनुष्ठान करती हैं; अतः जिसकी जो इच्छा हो, वह पूर्ण की जायगी।' पुरोहितकी बात सुनकर राजकुमार अवीक्षितने भी राजद्वारपर आये हुए समस्त याचकोंसे कहा-'मेरी परम सौभाग्यवती माता किमिच्छक-व्रत कर रही हैं; अतः मेरे शरीरसे किसीका कोई कार्य सिद्ध होनेवाला हो तो वह बतलावे। सब याचक सुन लें, मैं प्रतिज्ञापूर्वक कहता हूँ। इस किमिच्छक- व्रतके अनुष्ठानके अवसरपर तुमलोग क्या चाहते हो, बताओ! उसे मैं दूंगा।'
अपने बेटेके मुखसे यह बात सुनकर महाराज करन्धम तुरंत सामने आये और बोले-'मैं याचक हूँ। मुझे मेरी माँगी हुई वस्तु दो।'
अवीक्षित बोले-तात! आपको क्या देना है? बतलाइये। मेरा कर्तव्य दुष्कर हो, साध्य हो अथवा अत्यन्त दुःसाध्य हो; बताइये मैं उसे पूर्ण करूँगा।
अवीक्षित बोले-महाराज! मैं आपका एक ही पुत्र हूँ और ब्रह्मचर्यका पालन मेरा व्रत है। मेरे कोई पुत्र है ही नहीं, फिर आपको पौत्रका मुख कैसे दिखाऊँ?
राजाने कहा-बहुत कहनेसे क्या लाभ, तुम ब्रह्मचर्यको छोड़ो और अपनी माताके इच्छानुसार मुझे पौत्रका मुख दिखाओ।
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- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
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- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
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- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
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- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
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- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
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- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
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- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
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- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
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- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य