गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
मार्कण्डेयजी कहते हैं-जब पुत्रके बहुत कहनेपर भी राजाने दूसरी कोई वस्तु नहीं माँगी, तब उन्होंने कहा-'पिताजी! मैं आपको किमिच्छक दान देकर बड़े सङ्कट में पड़ गया। अब निर्लज्ज होकर फिर विवाह करूँगा। स्त्रीके सामने परास्त हुआ और पृथ्वीपर गिराया गया; फिर भी मुझे स्त्रीका स्वामी बनना पड़ेगा, यह बड़ा ही दुष्कर कर्म है। तथापि मैं क्या करूँ, सत्यके बन्धनमें बँधा हूँ। आपने जो आज्ञा दी है, वह करूँगा।'
एक दिन राजकुमार अवीक्षित शिकार खेलनेके लिये वनमें गये। वहाँ वे हरिण, वराह तथा व्याघ्र आदि जन्तुओंको अपने बाणोंका निशाना बनाने लगे। इतने में ही उन्हें सहसा किसी स्त्रीके रोनेका शब्द सुनायी दिया। वह भयसे गद्गदवाणीमें उच्चस्वरसे बार-बार क्रन्दन करती हुई त्राहि- त्राहिकी रट लगा रही थी। राजकुमार अवीक्षितने 'मत डरो, मत डरो' ऐसा कहते हुए अपने घोड़ेको उसी ओर बढ़ाया, जिधरसे वह शब्द आ रहा था। उस निर्जन वनमें दनुके पुत्र दृढ़केशके द्वारा पकड़ी गयी वह कन्या विलाप करती हुई कह रही थी, 'मैं महाराज करन्धमके पुत्र अवीक्षितकी पत्नी हूँ, किन्तु यह नीच दानव मुझे हरकर लिये जाता है। जिन महाराजके समक्ष समस्त राजा, गन्धर्व तथा गुह्यक भी खड़े होनेकी शक्ति नहीं रखते, जिनका क्रोध मृत्यु और पराक्रम इन्द्रके समान है, उन्हींकी पुत्रवधू होकर आज मैं एक दानवके द्वारा हरी जा रही हूँ।'
वह इस प्रकार कह-कहकर रो ही रही थी कि राजकुमार अवीक्षित तुरंत वहाँ जा पहुंचे। उन्होंने देखा, एक अत्यन्त मनोहर कन्या है, जो सब प्रकारके आभूषणोंसे शोभा पा रही है और हाथमें डंडा लिये दनु-पुत्र दृढ़केशने उसे पकड़ रखा है तथा वह करुण स्वरमें 'त्राहि-त्राहि' पुकार रही है। यह देखकर अवीक्षितने उससे कहा- 'तुम भय न करो।' फिर उस दानवसे कहा-'ओ दुष्ट! अब तू मारा जायगा। भूमण्डलके समस्त राजा जिनके प्रतापके सामने मस्तक झुकाते हैं, उन महाराज करन्धमके राज्यमें कौन दुष्ट जीवित रह सकता है।' राजकुमारको श्रेष्ठ धनुष लिये आया देख वह कृशाङ्गी युवती बार-बार कहने लगी, 'आप मुझे बचाइये। यह दुष्ट मुझे हरकर लिये जाता है। मैं महाराज करन्धमकी पुत्रवधू और अवीक्षितकी पत्नी हूँ। सनाथ हूँ तो भी इस वनमें यह दुष्ट मुझे अनाथकी भाँति हरकर लिये जाता है।'
यह सुनकर अवीक्षित उसकी बातपर विचार करने लगे-'यह किस प्रकार मेरी भार्या तथा पिताजीकी पुत्रवधू हुई ? अथवा इस समय तो इसे छुड़ाऊँ, फिर समझ लूँगा। पीड़ितोंकी रक्षा करनेके लिये ही क्षत्रिय हथियार धारण करते हैं।' ऐसा निश्चय करके वीर अवीक्षितने उस खोटी बुद्धिवाले दानवसे कुपित होकर कहा-'पापी! यदि जीवित रहना चाहता है तो इसे छोड़कर चला जा; अन्यथा तेरे प्राण नहीं बचेंगे।' इतना सुनते ही वह दानव उस कन्याको छोड़कर डंडेको ऊपर उठा अवीक्षितकी ओर दौड़ा। तब उन्होंने भी बाणोंकी वर्षासे उसे ढंक दिया। दानव दृढ़केश अत्यन्त मदसे मतवाला हो रहा था। राजकुमारके बाणोंसे रोके जानेपर भी उसने सौ कीलोंसे युक्त वह डंडा उनपर दे मारा; किन्तु राजकुमारने अपनी ओर आते हुए उस डंडेके बाण मारकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये। फिर दानवने कुपित होकर राजकुमारपर जो-जो हथियार चलाया, वह सब उन्होंने अपने बाणोंसे काट गिराया। डंडे और हथियारोंके कट जानेपर उसे बड़ा क्रोध हुआ और वह मुक्का तानकर राजकुमारकी ओर दौड़ा। पास आते ही राजकुमारने वेतसपत्र नामक बाणसे उसका मस्तक काट गिराया। इस प्रकार उस दुराचारी दानवके मारे जानेपर समस्त देवताओंने अवीक्षितको साधुवाद दिया और वर माँगनेके लिये कहा। तब उन्होंने अपने पिताका प्रिय करनेकी इच्छासे एक महापराक्रमी पुत्र माँगा।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
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- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
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- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
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- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
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- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
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- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
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- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य