गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
यह सुनकर वे दोनों भाई महादेवजीके चरणोंमें प्रणाम करके बड़े सन्तोषके साथ पुनः रसातलमें लौट आये। अश्वतरने उसी प्रकार श्राद्ध किया और मध्यम पिण्डका विधिपूर्वक भोजन किया। फिर जब उक्त मनोरथको लेकर वे तर्पण करने लगे, उस समय उनके साँस लेते हुए मध्यम फणसे सुन्दरी मदालसा तत्काल प्रकट हो गयी। नागराजने यह रहस्य किसीको नहीं बताया। मदालसाको महलके भीतर गुप्तरूपसे स्त्रियोंके संरक्षणमें रख दिया। इधर नागराजके पुत्र प्रतिदिन भूलोकमें जाते और ऋतध्वजके साथ देवताओंकी भाँति क्रीड़ा करते थे। एक दिन नागराजने प्रसन्न होकर अपने पुत्रोंसे कहा- 'मैंने पहले तुमलोगोंको जो कार्य बताया था, उसे तुम क्यों नहीं करते? पुत्रो! राजकुमार ऋतध्वज हमारे उपकारी और सम्मानदाता हैं, फिर उनका भी उपकार करनेके लिये तुमलोग उन्हें मेरे पास क्यों नहीं ले आते?'
अपने स्नेही पिताके यों कहनेपर वे दोनों मित्रके नगरमें गये और कुछ बातचीतका प्रसङ्ग चलाकर उन्होंने कुवलयाश्वको अपने घर चलनेके लिये कहा। तब राजकुमारने उन दोनोंसे कहा- 'सखे! यह घर भी तो आप ही दोनोंका है। धन, वाहन, वस्त्र आदि जो कुछ भी मेरा है, वह सब आपका भी है। यदि आपका मुझपर प्रेम है तो आप धन-रत्न आदि जो कुछ किसीको देना चाहें, यहाँसे लेकर दें। दुर्दैवने मुझे आपके स्नेहसे इतना वञ्चित कर दिया कि आप मेरे घरको अपना नहीं समझते। यदि आप मेरा प्रिय करना चाहते हों, अथवा यदि आपका मुझपर अनुग्रह हो तो मेरे धन और गृहको आपलोग अपना ही समझें। आपलोगोंका जो कुछ है, वह मेरा है और मेरा आपलोगोंका है। आपलोग मेरे बाहरी प्राण हैं, इस बातको सत्य मानें। मैं अपने हृदयकी शपथ दिलाकर कहता हूँ, आप मुझपर कृपा करके फिर ऐसी भेदभावको सूचित करनेवाली बात कभी मुँहसे न निकालें।'
यह सुनकर उन दोनों नागकुमारोंके मुख स्नेहके आँसुओंसे भीग गये और वे कुछ प्रेमपूर्ण रोषसे बोले- 'ऋतध्वज! तुम जो कुछ कहते हो, उसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। हमारे मनमें भी वैसा ही भाव है; परन्तु हमारे महात्मा पिताने बार-बार कहा है कि मैं कुवलयाश्वको देखना चाहता हूँ।' इतना सुनते ही कुवलयाश्व अपने सिंहासनसे उठकर खड़े हो गये और यह कहकर कि 'पिताजीकी जैसी आज्ञा है, वही करूँगा' वे पृथ्वीपर उनके उद्देश्यसे प्रणाम करने लगे।
कुवलयाश्व बोले- मैं धन्य हूँ, अत्यन्त पुण्यात्मा हूँ, मेरे समान भाग्यशाली दूसरा कौन है; क्योंकि आज पिताजी मुझे देखनेकी इच्छा करते हैं। अतः मित्रो! आपलोग उठे और उनके पास चलें। मैं पिताजीके चरणोंकी शपथ खाकर कहता हूँ, उनकी इस आज्ञाका क्षणभर भी उल्लङ्घन करना नहीं चाहता।
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- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
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- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
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- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
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- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
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- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
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- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
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- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
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- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य