लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

यों कहकर राजकुमार ऋतध्वज उन दोनों नागकुमारोंके साथ नगरसे बाहर निकले और पुण्यसलिला गोमतीके तटपर गये। फिर वे सब लोग गोमतीकी बीच धारामें उतरकर चलने लगे। राजकुमारने सोचा- 'नदीके उस पार इन दोनोंका घर होगा।' इतनेमें ही उन नागकुमारोंने उन्हें खींचकर पाताल पहुँचा दिया। वहाँ जानेपर उन्होंने अपने दोनों मित्रोंको स्वस्तिकके लक्षणोंसे सुशोभित सुन्दर नागकुमारोंके रूपमें देखा। वे फणोंकी मणिसे देदीप्यमान हो रहे थे। उन्हें इस रूपमें देखकर राजकुमारके नेत्र आश्चर्यसे खिल उठे। उन्होंने मुसकाते हुए प्रेमपूर्वक कहा- 'वाह, यह तो अच्छा रहा।' पातालमें कहीं तो वीणा और वेणुकी मधुर ध्वनिके साथ सङ्गीतके शब्द सुनायी देते थे। कहीं मृदङ्ग और ढोल आदि बाजे बज रहे थे। सैकड़ों मनोहर भवन चारों ओर दृष्टिगोचर होते थे। इस प्रकार अपने प्रिय नागकुमारोंके साथ पातालकी शोभा निहारते हुए राजकुमार ऋतध्वज आगे बढ़ने लगे। कुछ दूर जानेके बाद सबने नागराजके महलमें प्रवेश किया। नागराज अश्वतर सोनेके सिंहासनपर, जिसमें मणि, मूंगे और वैदूर्य आदि रत्नोंकी झालरें लगी थीं, विराजमान थे। उनके अङ्गोंमें दिव्य हार एवं दिव्य वस्त्र शोभा पा रहे थे। कानोंमें मणिमय कुण्डल झिलमिला रहे थे। सफेद मोतियोंका मनोहर हार वक्षःस्थलकी शोभा बढ़ा रहा था और भुजाओंमें भुजबंद सुशोभित थे। दोनों नागकुमारोंने 'यही हमारे पिताजी हैं' यों कहकर राजकुमारको उनका दर्शन कराया और पिताजीसे यह निवेदन किया कि 'यही हमारे मित्र वीर कुवलयाश्व हैं।' ऋतध्वजने नागराजके चरणोंमें मस्तक झुकाकर प्रणाम किया। नागराजने उन्हें बलपूर्वक उठाया और खूब कसकर छातीसे लगा लिया। फिर उनका मस्तक सूंघकर कहा-'बेटा! चिरजीवी रहो। शत्रुओंका नाश करके पिता-माताकी सेवा करो। वत्स! तुम धन्य हो; क्योंकि मेरे पुत्रोंने परोक्षमें भी मुझसे तुम्हारे असाधारण गुणोंकी प्रशंसा की है। तुम मन, वाणी और शरीरकी चेष्टाओंके साथ अपने गुण-गौरवसहित सदा बढ़ते रहो। गुणवान्का ही जीवन प्रशंसनीय है। गुणहीन मनुष्य तो जीते- जी ही मरेके समान है। गुणवान् पुत्र पिता- माताको शान्ति एवं सन्तोष प्रदान करता है। देवता, पितर, ब्राह्मण, मित्र, याचक, दुःखी तथा बन्धु-बान्धव भी गुणवान् पुरुषके चिरंजीवी होनेकी अभिलाषा करते हैं। जिनकी कभी निन्दा नहीं हुई, जो दीन-दुखियोंपर दया करते तथा आपत्तिग्रस्त मनुष्य जिनकी शरण लेते हैं, ऐसे गुणवान् पुरुषोंका ही जन्म सफल है।'

वीर कुवलयाश्वसे यों कहकर उनका स्वागत- सत्कार करनेके लिये नागराज अपने पुत्रोंसे बोले-'बेटा! क्रमश: स्नान आदि सब कार्य पूरा करके इन्हें इच्छानुसार भोजन कराओ। उसके बाद हमलोग इनसे मनको प्रसन्न करनेवाली बातें करते हुए कुछ कालतक एक साथ बैठेंगे।' राजा शत्रुजित्के पुत्रने चुपचाप उनकी आज्ञा स्वीकार की। तत्पश्चात् सत्यवादी नागराजने अपने पुत्रों तथा राजकुमारके साथ प्रसन्नतापूर्वक भोजन किया।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai