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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

राजा पहले अपने आत्माको, फिर मन्त्रियोंको जीते। तत्पश्चात् अपनेसे भरण-पोषण पानेवाले कुटुम्बीजनों एवं सेवकोंके हृदयपर अधिकार प्राप्त करे। तदनन्तर पुरवासियोंको अपने गुणोंसे जीते। यह सब हो जानेपर शत्रुओंके साथ विरोध करे। जो इन सबको जीते बिना ही शत्रुओंपर विजय पाना चाहता है, वह अपने आत्मा तथा मन्त्रियोंपर अधिकार न रखनेके कारण शत्रुसमुदायके वशमें पड़कर कष्ट भोगता है।*

* वत्स राज्येऽभिषिक्तेन प्रजारञ्जनमादितः।
कर्तव्यमविरोधेन स्वधर्मस्य महीभृता॥
व्यसनानि परित्यज्य सप्त मूलहराणि वै।
आत्मा रिपुभ्यः संरक्ष्यो बहिर्मन्त्रविनिर्गमात् ॥
अष्टधा नाशमाप्नोति स्ववक्रात् स्यन्दनाद्यथा।
तथा राजाप्यसन्दिग्धं बहिर्मन्त्रविनिर्गमात्॥
दुष्टादुष्टांश्च जानीयादमात्यानरिदोषतः।
चरैश्चरास्तथा शत्रोरन्वेष्टव्याः प्रयत्नतः ॥
विश्वासो न तु कर्तव्यो राज्ञा मित्राप्तबन्धुषु।
कार्ययोगादमित्रेऽपि विश्वसीत नराधिपः॥
स्थानवृद्धिक्षयज्ञेन श्चैव षाड्गुण्यविदितात्मना।
भवितव्यं नरेन्द्रेण न कामवशवर्तिना॥
प्रागात्मा मन्त्रिणश्चैव ततो भृत्या महाभृता।
जेयाश्चानन्तरं पौरा विरुध्येत ततोऽरिभिः ॥
यस्त्वेतानविजित्यैव वैरिणो विजिगीषते।
सोऽजितात्माजितामात्यः शत्रुवर्गेण बाध्यते॥
(२७। ४-११)

इसलिये बेटा! पृथ्वीका पालन करनेवाले राजाको पहले काम आदि शत्रुओंको जीतनेकी चेष्टा करनी चाहिये। उनके जीत लेनेपर विजय अवश्यम्भावी है। यदि राजा ही उनके वशमें हो गया तो वह नष्ट हो जाता है। काम, क्रोध, लोभ, मद, मान और हर्ष-ये राजाका विनाश करनेवाले शत्रु हैं। राजा पाण्डु काममें आसक्त होनेके कारण मारे गये तथा अनुह्राद क्रोधके कारण ही अपने पुत्रसे हाथ धो बैठा। यह विचारकर अपनेको काम और क्रोधसे अलग रखे। राजा पुरूरवा लोभसे मारे गये और वेनको मदके कारण ही ब्राह्मणोंने मार डाला। अनायुष्के पुत्रको मानके कारण प्राणोंसे हाथ धोना पड़ा तथा पुरञ्जयकी मृत्यु हर्षके कारण हुई; किन्तु महात्मा मरुत्तने इन सबको जीत लिया था, इसलिये वे सम्पूर्ण विश्वपर विजयी हुए। यह सोचकर राजा उपर्युक्त दोषोंका सर्वथा त्याग करे। वह कौवे, कोयल, भौरे, हरिन, साँप, मोर, हंस, मुर्गे और लोहेके व्यवहारसे शिक्षा ग्रहण करे।*

* तात्पर्य यह कि राजा कौवेके समान आलस्यरहित और सावधान हो। जैसे कोयल अपने अण्डेका कौवोंसे पालन कराती है, वैसे ही राजा भी दूसरोंसे अपना कार्य साधन करे। वह भौं के समान रसग्राही और मृगके समान सदा चौकन्ना रहे। जैसे सर्प बड़ा-बड़ा फन निकालकर दूसरोंको डराता और मेढकको चुपके-से निगल जाता है, उसी प्रकार राजा दूसरोंपर आतङ्क जमाये रहे और सहसा आक्रमण करके शत्रुको अपने अधीन कर ले। जैसे मोर अपने समेटे हुए पंखको कभी- कभी फैलाता है, उसी प्रकार राजा भी समयानुसार अपने संकुचित सैन्य और बलका विस्तार करे। वह हंसोंके समान नीर-क्षीरका विवेक करनेवाला गुणग्राही हो। मुर्गोंके समान रात रहते ही शयनसे उठकर कर्तव्यका विचार करे और लोहेकी भाँति शत्रुओंके लिये अभेद्य एवं कर्तव्यपालनमंा कठोर हो।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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