गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
राजा अपने शत्रुके प्रति उल्लूका-सा बर्ताव करे। जैसे उल्लू पक्षी रातमें सोये कौओंपर चुपचाप धावा करता है, उसी प्रकार राजा शत्रुकी असावधान-दशामें ही उसपर आक्रमण करे तथा समयानुसार चींटीकी- सी चेष्टा करे-धीरे-धीरे आवश्यक वस्तुओंका संग्रह करता रहे।*
* तस्मात्कामादयः पूर्वं जेयाः पुत्र महीभुजा।
तज्जये हि जयोऽवश्यं राजा नश्यति तैर्जितः ॥
कामः क्रोधश्च लोभश्च मदो मानस्तथैव च।
हर्षश्च शत्रवो ह्येते विनाशाय महीभृताम् ॥
कामप्रसक्तमात्मानं स्मृत्वा पाण्डं निपातितम्।
निवर्तयेत्तथा क्रोधादनुह्रादं हतात्मजम्॥
हतमैलं तथा लोभान्मदाद्वेनं द्विजैर्हतम्।
मानादनायुषः पुत्रं हतं हर्षात्पुरञ्जयम्॥
एभिर्जितैर्जितं सर्वं मरुत्तेनमहात्मना।
स्मृत्वा विवर्जयेदेतान्दोषान् स्वीयान्महीपतिः।
काककोकिलभृङ्गाणां मृगव्यालशिखण्डिनाम्।
हंसकुक्कुटलोहानां शिक्षेत चरितं नृपः ॥
कौशिकस्य क्रियां कुर्याद् विपक्षे मनुजेश्वरः।
चेष्टां पिपीलिकानां च काले भूयः प्रदर्शयेत् ॥
(२७। १२-१८)
राजाको आगकी चिनगारियों तथा सेमलके बीजसे कर्तव्यकी शिक्षा लेनी चाहिये। जैसे आगकी छोटी-सी चिनगारी बड़े-से-बड़े वनको जला डालनेकी शक्ति रखती है, उसी प्रकार छोटा-सा शत्रु भी यदि दबाया न जाय तो बहुत बड़ी हानि कर सकता है। जैसे छोटा-सा सेमलका बीज एक महान् वृक्षके रूपमें परिणत होता है, उसी प्रकार लघु शत्रु भी समय आनेपर अत्यन्त प्रबल हो जाता है। अतः दुर्बलावस्थामें ही उसे उखाड़ फेंकना चाहिये। जैसे चन्द्रमा और सूर्य अपनी किरणोंका सर्वत्र समान रूपसे प्रसार करते हैं, उसी प्रकार नीतिके लिये राजाको भी समस्त प्रजापर समान भाव रखना चाहिये। वेश्या, कमल, शरभ, शूलिका, गर्भिणी स्त्रीके स्तन तथा ग्वालेकी स्त्रीसे भी राजाको बुद्धि सीखनी चाहिये। राजा वेश्याकी भाँति सबको प्रसन्न रखनेकी चेष्टा करे, कमल-पुष्पके समान सबको अपनी ओर आकृष्ट करे, शरभके समान पराक्रमी बने, शूलिकाकी भाँति सहसा शत्रुका विध्वंस करे। जैसे गर्भिणीके स्तनमें भावी सन्तानके लिये दूधका संग्रह होने लगता है, उसी प्रकार राजा भविष्यके लिये सञ्चयशील बने और जिस प्रकार ग्वालेकी स्त्री दूधसे नाना प्रकारके खाद्य पदार्थ तैयार करती है, वैसे ही राजाको भी भाँति-भाँतिकी कल्पनामें पटु होना चाहिये। वह पृथ्वीका पालन करते समय इन्द्र, सूर्य, यम, चन्द्रमा तथा वायु-इन पाँचोंके रूप धारण करे। जैसे इन्द्र चार महीने वर्षा करके पृथ्वीपर रहनेवाले प्राणियोंको तृप्त करते हैं, उसी प्रकार राजा दानके द्वारा प्रजाजनोंको सन्तुष्ट करे। जिस प्रकार सूर्य आठ महीनोंतक अपनी किरणोंसे पृथ्वीका जल सोखते रहते हैं, इसी प्रकार सूक्ष्म उपायोंसे धीरे-धीरे कर आदिका संग्रह करे।
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- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
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- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
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- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
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- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य