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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


“इन्स्पेक्टर तो यकीन करेगा”-सुनील बोला-"या वो भी नहीं करेगा?"
“जब भावना कहेगी कि मैं साढ़े आठ बजे वहां से चला गया था तो...."
"तो इन्स्पेक्टर चानना समझेगा कि वो बेचारी, मुलाहजे की मारी तुम्हारी खातिर झूठ बोल रही थी।"
"फिर इन्स्पेक्टर" - रमाकान्त बोला- “और भी तेरे खिलाफ हो जायेगा।"
“और अपना एक कम्पीटीटर घटाने के लिये"
सुनील बोला--"तुम्हारा पुलन्दा बान्धने की हरचन्द कोशिश करेगा।"
सूरी के मुंह से बोल न फूटा।
कुछ.क्षण खामोशी रही।
“तुम लोग खामखाह मुझे डरा रहे हो।" -फिर वो हिम्मत करके बोला। .
"तू क्यों डरता है, मां सदके!" - रमाकान्त बोला।
"वो इन्स्पेक्टर मेरा कछ नहीं बिगाड सकता। भावना मेरा साथ नहीं भी देगी तो भी वो मेरी इस एलीबाई को नहीं हिला ... सकता कि मैं रात नौ से दस वजे तक आकाशवाणी के साउंड — स्टूडियो नम्बर पांच में था। नाओ प्लीज टेक दि हैल आउट ऑफ हेयर।"
सुनील ने एक गहरी सांस ली और फिर असहाय भाव से गर्दन हिलाना रमाकान्त के साथ वहां से बाहर निकल गया।
सूरी ने उनके पीछे भड़ाक से दरवाजा वन्द किया।
रमाकान्त लिफ्ट की तरफ बढ़ा, उसने लिफ्ट के काल बटन की तरफ उंगली उठाई तो सुनील ने उसे रोक दिया।
“जो वार्तालाप अभी भीतर हुआ"-सुनील धीरे से बोला "उसकी रू में ये भावना से फौरन बात किये बिना नहीं मानने वाला। बेडरूम में उसका भाई सोया पड़ा है जिसकी नींद वो डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था, इसलिये वो बाहर ड्राईंगरूम से ही टेलीफोन करेगा क्योंकि फोन वहां भी पड़ा था। फोन दरवाजे से ज्यादा दूर नहीं पड़ा था इसलिये मुझे उम्मीद है कि की-होल के जरिये आवाज बाहर सुनी जा सकेगी। तुम दायें-बायें निगाह रखना, मैं की-होल से कान लगाता हूं।"
रमाकान्त ने सहमति में सिर हिलाया।
सुनील बन्द दरवाजे के पार पहुंचा, उसने उकडूँ होकर की-होल में आंख लगाई तो सूरी को डायल पर उंगली चलाते पाया । उसने आंख की जगह अपना एक कान लगाया तो डायल टोन की आवाज भी उसे साफ सुनाई दी।
उसने रमाकान्त की ओर देख कर सहमति में सिर हिलाया।
रमाकान्त का सिर भी वैसे ही हिला। की-होल से कान सटाये सुनील स्तब्ध खड़ा रहा।
"हल्लो! भावना!" --एकाएक उसे भीतर से आती सूरी की धीमी लेकिन स्पष्ट आवाज सुनाई दी-“मैं बोल रहा हूं संजीव। डार्लिंग, हमें स्क्रिप्ट तब्दील करनी पड़ेगी। वो क्या है कि तुम्हारे सुझाये मुताबिक इस बात की जिद पकड़ना मुमकिन नहीं रह गया है कि आज शाम मैं तुम्हारे यहां नहीं आया था क्योंकि तुम्हारे खानसामे दशरथ ने मुझे वहां एन्ट्री लेते देख लिया था....
क्या? ऐसा नहीं हो सकता? खानसामे ने मुझे देखा नहीं हो सकता?....
फिर भी उस कमीने ने मुझे उल्लू बना लिया। लेकिन वो तो ये भी कहता था कि तुमने अपनी जुबानी कुबूल किया था कि तुम्हारा मेरे से लव अफेयर था।....कौन कहता था पूछ रही हो?....
अरे, वही वो सुनील करके जो लड़का था जो अपने आपको 'ब्लास्ट' का रिपोर्टर बताता था।....
क्या? तुम किसी सुनील को नहीं जानतीं? तुमने उसकी कभी सूरत तक नहीं देखी?....हे भगवान! ऐसा उल्लू बना गया वो कम्बख्त मुझे?....
नहीं, पुलिस अभी यहां नहीं पहुंची....लेकिन डार्लिंग, अब तुम्हारे वाली बात को फालो करना मुमकिन नहीं रहा
क्योंकि मैं उस सुनील के बच्चे के और उसके रमाकान्त नाम के एक दोस्त के सामने अपनी जुबानी कुबूल कर चुका हूं कि मैं साढ़े सात बजे वहां पहुंचा था और साढ़े आठ बजे तक वहां तुम्हारे साथ रहा था। यानी कि तुम इस बात की तसदीक कर सकती हो कि कत्ल के वक्त से बहुत पहले मैं तुम्हारी आंखों के सामने वहां से रुखसत हो चुका था।....
और डार्लिंग, मेरे से एक गुनाह हो गया है जिसकी मैं तुमसे हजार-हजार माफी चाहता हूं। उसी कमीने सुनील ने मुझे भड़का दिया था। कहता था जो पुलिस इन्स्पेक्टर चानना तफ्तीश के लिये वहां पहुंचा था, वो तुम्हारा कोई पुराना यार था और आज भी तुम पर दिल रखता था। तब गुस्से में मेरे मुंह से निकल गया था कि तुम्हारा मेरा अफेयर एकतरफा था.... अब मैं क्या करूं? कह बैठा कि तुम्हीं मेरे पीछे पड़ी रहती थीं जबकि मेरे मन में तुम्हारे लिये कुछ नहीं था...डार्लिंग, आई अन्डरस्टैण्ड । तुम जानती हो, मैं जानता हूं कि ये बात गलत है लेकिन क्या करूं! गुस्से में कुछ अनाप-शनाप निकल गया।...मैं मानता हूं नहीं होना चाहिये था ऐसा। तभी तो माफी मांग रहा हूं। हजार बार माफी मांग रहा हूं और बार-बार अपने आपको कोस रहा हूं कि क्यों मैं उनके भड़काये भड़क गया।....
भगवान के लिये इतनी मेहरबानी मेरे पर करना कि तुम उनकी बातों में न आना, तुम उनके भड़काये न भड़कना।....
वही तो। पता नहीं क्या करतब जानते थे कमीने कि हलक में हाथ देकर ऐसी बात निकलवा ली जो कि मैं नहीं कहना चाहता था।....अरे नहीं। ऐसी बात नहीं। तुम गलत कहती हो कि अपनी खाल बचाने के लिये मैंने तुम्हें कुर्बान कर दिया या अपनी इमेज बनाने के लिये तुम्हें जलील कर दिया। तुम उनकी बातों को कान नहीं दोगी तो मैं मुकर ही जाऊंगा कि मैंने ऐसा कुछ कहा था।....लेकिन तुम्हें भी तो हमारे अफेयर की बावत मुंह नहीं फाड़ना चाहिये था।....

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