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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


“मैं बयान नहीं कर सकता कि मुझे बतरा की मौत का कितना अफसोस है!" ।
"आप ऊपर क्या कर रहे हैं?"
"तुम नीचे दिखाई न दी इसलिये ऊपर आ गया था क्योंकि मुझे यहां भी काम था।"
"साहब की तारीफ?" -सुनील उत्सुक भाव से बोला।
"ये सागर संतोषी साहब हैं।"
भावना बोली -"बहुत बड़े - लेखक हैं। भारत के सबसे ज्यादा बिकने और पढ़े जाने वाले।"
"नाम तो सुना है।"
“और सागर साहब, ये 'ब्लास्ट' के चीफ रिपोर्टर मिस्टर सुनील हैं।"
“भई, नाम तो मैंने भी तुम्हारा खूब सुना है"-लेखक बोला "मशहूर तो तुम भी कम नहीं हो।"
"आप से तो कोई मुकाबला नहीं, जनाब। आप पूरे हिन्दोस्तान में जाने जाते हैं, मेरी शिनाख्त तो राजनगर में ही हो जाये तो गनीमत है।"
"आप आये कब?"-भावना बोली-
"मैं नीचे ही थी। मैंने तो आपको आते देखा नहीं था।"
“चोर दरवाजे से आया था। हमेशा की तरह।"
"चोर दरवाज़ा?" -सुनील की भवें उठीं।
“पीछे का रास्ता। जिसका नाम मैंने चोर दरवाजा रखा हुआ है।....उधर ही पिछवाड़े के झाड़-झंखाड़ से थोड़ा आगे मेरी कुटिया है इसलिये यहां पिछवाड़े से ही आने में मुझे सहूलियत होती है।"
"पीछे तो जंगल है।"
“बीच में एक पगडंडी है जो कि, शायद तुम्हें यकीन न आयें कि मुझ अकेले आदमी की उधर से मुतवातर आवाजाही की वजह से बनी है।"
... "आई सी". .
"खुदा उसे जन्नतनशीन करे, बतरा बहत मेहरबान आदमी था, पिछवाड़े के प्रवेशद्वार की एक चाबी तक उसने मुझे दी हुई थी ताकि मेरा कोठी में आना जाना बेरोकटोक हो सकता।"
"पिछवाड़े की भी और इस कमरे की भी?"
"नहीं, भाई । यहां की चाबी तो यहां के ताले में ही लगी हुई थी।...अभी भी लगी हुई है। देख लो।"
सुनील ने खुले दरवाजे की तरफ निगाह उठायी तो पाया कि उसके बिल्ट-इन लॉक में चाबी मौजूद थी।
"ये चाबी ताले में ही रहती है?"-उसने भावना से पूछा।
"नहीं।" --वो जल्दी से बोली- “उनकी जेब में ही रहती थी। पुलिस ने वहां से बरामद की थी। उन लोगों ने इस कमरे की तलाशी ली थी और फिर लगता है कि चाबी को ताले में ही छोड़ के चलते बने थे।"
"आई सी।"
“उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिये था। उन्हें यहां बदस्तूर ताला लगा कर चाबी मुझे सौंपनी चाहिये थे।"-वो एक क्षण ठिठकी और फिर बोली-“मुझे भी तो चाबी का पहले खयाल न आया।"
"आप"--सुनील लेखक से सम्बोधित हुआ- “दराज मे क्या ढूंढ रहे थे?"
"कल कत्ल के बाद रिवाल्वर यहीं रह गयी थी।"-लेखक मुस्कराता हुआ बोला- “सोचा, शायद किसी दराज में हो।"
"काफी मजाकपसन्द आदमी हैं आप लेकिन कत्ल के मामले में ऐसे मजाक महंगे पड़ सकते हैं, जनाब।"
"मुझे क्यों महंगे पड़ेंगे? मेरा कत्ल से क्या लेना देना है?....मैं तो मर्डर सस्पैक्ट नहीं हूं। होता तो कल रात को नहीं तो आज तो मेरी कोई जवाबतलबी हुई होती!"
"कल रात कहां थे आप साढ़े नौ बजे के करीब?"
“यहीं था।"
“यहां था क्या मतलब? यहीं, इसी कमरे में?"
"इस कोठी में। लेकिन यहां नहीं, बेसमेंट में। जहां कि जिम है।”
“कोठी में कोई बेसमेंट भी है?"

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