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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


"है और वहां बतरा ने व्यायाम के लिये एक जिम बनाया हुआ है।....एक्सरसाइज की कई तरह की मशीनें वहां मौजूद हैं।....उस जिम को कभी भी इस्तेमाल करने की बतरा की तरफ से मुझे खुली छूट थी, इसीलिये उसने मुझे पिछवाड़े के दरवाजे की एक चाबी भी दी हुई थी।"
"गोया आप भी हैल्थ फ्रीक हैं?"
"हां। रोज शाम को आता हूं यहां।....कल जिस वक्त की बाबत तुम्हारा सवाल था, उस वक्त भी मैं नीचे बेसमेंट में था और पसीना बहा रहा था।" ।
“कब तक ठहरे वहां?"
"यही कोई आधा घन्टा। दस बजे तक।"
तब सनील ने एक सरसरी निगाह उसके सिर से पांव तक दौड़ाई। उसने पाया कि वो एक काटन का कुर्ता-पाजामा और जैकेट और पैरों में अंगूठे वाली चप्पल पहने था।
"जिम में एक्सरसाइज आप इसी पोशाक में करते हैं?" --- उसने पूछा।
"नहीं, भई। तब तो मैं ट्रैक सूट और स्पोर्ट्स शूज पहन के आता हूं।....मेरी मौजूदा पोशाक पर न जाओ, मैं फॉरेन घूम कर आया हुआ हूं।"
“क्यों नहीं, जनाब! पैसा होना चाहिये, मर्जी होनी चाहिये, आदमी चांद पर भी जा सकता है।"
"यू सैड इट, माई डियर।"
"आप ऐन कत्ल के वक्त यहां थे लेकिन किसी को आपकी खबर नहीं। कत्ल की खबर आम होते ही ऊपर तो हंगामा बरपा गया था। फिर भी आपने ऊपर दर्शन देने की जहमत न उठाई। ऐसा क्योंकर हुआ, बन्दानवाज?"
"जिम साउन्डप्रफ है।"
“आई सी। यानी कि आपने ऊपर मचे होहल्ले की कोई आवाज न सुनी?" .
"कैसे सुनता?....बोला न जिम साउन्डप्रफ है।"
"लेकिन वहां से रुखसत होते वक्त तो...."
"बेसमेंट से रुखसत होने के लिए ड्राईंगरूम में या कोठी के अग्रभाग में, जैसे कि हाल में, नहीं जाना पड़ता। इसलिये तब भी मुझे ऐसा कोई अहसास नहीं हुआ था कि कोठी में कोई असाधारण घटना घटित हो गयी थी।"
"आई सी। आपको लौटते किसी ने न देखा?"
"न।"
“यहां पहुंचते?"
"तब भी किसी ने नहीं देखा था।....मुझे पिछवाड़े में या नीचे बेसमेंट में कोई नहीं मिला था। न आती बार न जाती बार।"
“यहां से आप कहां गये थे?"
“वापिस अपने झोंपड़े में, जहां कि मैंने एक हैम सैंडविच और काफी का डिनर किया था, कोई घन्टा भर एक नावल पढ़ा था।
और फिर सो गया था।"
"आप झोंपड़े में रहते हैं?"
"छोटा सा बंगला है।"-भावना जल्दी से बोली।
"लेकिन इस आलीशान कोठी के मुकाबले में तो झोंपड़ा ही है। कुटिया ही है।"
"बहुत मॉडेस्ट आदमी हैं आप।"
वो केवल हंसा।
"कत्ल की खबर कब लगी?"
"सुनोगे तो यकीन नहीं करोगे। सुबह का अखबार पढ़ के लगी।....मेरे गरीबखाने से पांच सौ गज के फासले पर कत्ल हो गया-वो भी मेरे जिगरी का-और मुझे उसकी.खबर अखबार पढ़ कर लगी।"
“हूं। असल बात बीच में ही रह गयी। आप यहां क्या तलाश कर रहे थे?"
"अपना लिखा एक पुराना नावल तलाश कर रहा था जिसे कि मैंने रिप्रिंट के लिये फौरन दिल्ली के एक प्रकाशक को अरसाल करना है।....मेरे पास उसकी एक ही कापी थी जिसे कि बतरा पढ़ने के लिये ले आया था। मैं उसे ही ढूंढ रहा था।"
"आई सी। किस किस्म के उपन्यास लिखते हैं आप?"
"जासूसी। मर्डर मिस्ट्री। जिनका कि मैं स्पेशलिस्ट माना जाता हूं।"

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