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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


रमाकान्त ने कालबैल बजाकर एक वेटर को बुलाया और उसे ड्रिंक्स की बाबत आवश्यक निर्देश दिये। ड्रिंक्स सर्व होने तक कोई कुछ न बोला। फिर तीनों ने चियर्स बोला।
“जो एक बोतल रोज पिये।"-रमाकान्त बोला-"वो किसी और वजह से मरने के लिये सौ साल जिये।"
सुनील हंसा।
"हस्सया ई कंजर।"
"क्या खबर है?"-फिर सुनील अर्जुन से सम्बोधित हुआ।
"कई खबरियां हैं, गुरूजी।"-अर्जुन चहका।
"शुक्र है। शुक्र है कि तूने भी आके ये मातमी,खबर न सुनायी कि कुछ हाथ न लगा। अब बोल, क्या खबर है?" ।
“सबसे पहले तो उस लेखक सागर संतोषी के बारे में ही सुनिये। सुनने में आया है कि उसके नाम से पचास से ज्यादा जो बैस्टसैलर नावल छप चुके हैं उनमें से तीन चौथाई से ज्यादा उसके लिये घोस्टराइट किये गये हैं।"
"यानी कि नावल लिखे किसी भूत लेखक ने लेकिन छपे उसके नाम से?"
"हां"
"ऐसी कड़क बात तू कैसे जान पाया?"
"दिमाग लड़ाया, गुरुजी।"
"क्या किया?"
"गुरु जी, मैंने किसी बड़े आदमी का बोल कहीं पढ़ा था कि किसी की खामियां जाननी हो तो उसके किसी प्रतिद्वन्द्वी के सामने उसकी खूबियों की तारीफ करना शुरू कर दीजिये। फिर प्रतिद्वन्द्वी के मुखारविन्द से अपने आप ही दूसरे की खामियों की गंगा-जमना वह निकलेगी। मैंने सागर संतोषी जैसे ही किसी दूसरे लेखक को पकड़ा, जो कि सागर संतोषी की तरक्की और कामयाबी से साफ साफ कुढ़ता था, और उस पर ये फार्मूला आजमाया। मुखालफत में जो बेतहाशा बातें सुनने को मिली उनमें से सबसे करारी यह थी कि सागर संतोषी की खुद की कलम में कोई खूबी ही नहीं थी। वो तो कौड़ियों के मोल नामालूम लेखकों से नावल लिखवाता था और आगे अपने नाम का ठप्पा लगा कर लाखों में रायल्टी बटोरता था।
"अर्जुन, तूने तो कमाल कर दिया!"
"अभी और सुनिये।"
“यानी कि वो माल अलग बांध के रखा है जो बढ़िया है! वो भी वोल, मेरे खीर के पिस्ते।"
सागर संतोषी के प्रतिद्वन्द्वी को गोपाल बतरा के उस फिल्मी लेखन की भी खबर थी जिससे कि हर कोई कहता है कि उसने लाखों कमाये थे। गुरुजी, वो फिल्मी लेखन वाली बात तो सच है लेकिन लाखों की कमाई वाली बात गलत है। 'खून खिलाड़ी का' नाम की फिल्म लिखने की जो उजरत बतरा को मिली थी, वो लाखों में नहीं, सिर्फ हजारों में थी।"
"फिल्मों में काला धन बहुत चलता है।"--रमाकान्त वोला
"उसने हजारों की उजरत का बखान अपनी ब्लैकमेल की कमाई पर पर्दा डालने की नीयत से कर दिया होगा।" ।
“या उसने तो कुछ भी नहीं कहा होगा" -सुनील बोला "उसके सगे वालों ने ही लाखों की कमाई का किस्सा मशहूर कर दिया होगा। आखिर उसकी बीवी और साली को भी तो इस बात से तकलीफ होती होगी कि लोग बाग उन लोगों की ऐशोइशरत को ब्लैकमेल की कमाई का सिला समझें। उस बाबत जो साली ने कहा, उसकी बीवी ने हामी भर दी। जो बीवी ने कहा, उसकी सागर संतोषी नाम के उस मकतूल के दोस्त ने तसदीक कर दी।"
"बिल्कुल ।"
“और?"--सुनील फिर अर्जुन की तरफ आकर्षित हुआ।
“और श्मशान घाट की हाजिरी।"-अर्जुन बोला।
"हो गया घर के भेदी का क्रियाकर्म?"
"हां। लेकिन सात की जगह पौने नौ बजे हआ। अभी मैं सीधा वहीं से लौट रहा हूं।"
"तू श्मशान घाट से आया है?" --रमाकान्त वोला। "हां"
"किसी ने तुझे बताया नहीं कि श्मशान घाट से सीधे घर जाते हैं।"
“बताया है। लेकिन ठेके पर जा सकते हैं।" . . . “ठेका?"
“चियर्स!" -अर्जुन अपना लगभग खाली गिलास ऊंचा करता बड़े धूर्त भाव से बोला।
"माईंयवा। जुलाहे दियां मस्खरियां मां भैन नाल।" अर्जुन हंसा।
"हाजिरी की बात कर।" -सुनील बोला।
"ठीक ठीक ही थी हाजिरी।"-अर्जुन बोला- "कोई शहर तो नहीं उमड़ पड़ा था लेकिन फिर भी काफी लोग थे। 'जागरूक' का तकरीबन स्टाफ तो था ही, मेरी तरह दो-चार और बिरादरीभाई भी थे। कल की पार्टी के मेहमानों में से पंकज सक्सेना और तानिया चटवाल के अलावा दो-तीन जने ही और थे। स्टाफ में से सिर्फ ड्राइवर जगतसिंह और खानसामा दशरथ था। विधवा थी, उसकी बहन थी और लेखक सागर संतोषी था। जनाबेहाजरीन को मेरी ही तरह निगाहों से टटोलता इन्स्पेक्टर सुखवीर चानना था। निरंजन चोपड़ा था...."
"वो भी था?"
"हां"
"आई सी।"
"कोई खास आदमी नहीं था तो बस संजीव सूरी नहीं था।"
“वो कैसे होता? वो तो खिसक गया।"
"दाह संस्कार में शामिल होने के लिये लौट सकता था।"
"इन्स्पेक्टर उसे वहीं धर दबोचता।"
"वो तो है।"
"और?"
"और साली का जन्म दिन।"
"मालूम हो गया?"
“बड़े आराम से। तानिया चटवाल को ही मालूम था जो कि श्मशान घाट पर मौजूद थी।"
"क्या बोली वो?" "बकौल तानिया, संचिता का जन्म दिन अप्रैल के महीने में आता है। ऐन बैसाखी वाले दिन।"
"जबकि पन्द्रह दिन पहले तो सितम्बर का मिडल था।"
“प्यारयो" -रमाकान्त बोला-"फिर तो जीजा साली की वो चूमा-चाटी साली को सिर्फ जन्म दिन के तोहफे का 'थेंक्यू' नहीं थी।" .
“अभी तो और भी सुनिये।" --अर्जुन पुरजोर लहजे से बोला- “साली कहती है कि जीजा ने उसे बतौर बर्थ डे प्रेजेन्ट एक हीरे की अंगूठी दी। ऐसी कोई कीमती अंगूठी साली के पास होती तो क्या उसका खास ब्वाय फ्रेंड उससे बेखबर होता?"
"क्या मतलब?" -सुनील बोला।

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