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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


“आई कैन टेक दि हिंट, बॉस।”-सुनील उठता हुआ बोला "तो बन्दा चला।"
उसने बड़ी गर्मजोशी से प्रभुदयाल से हाथ मिलाया और वहां से रुखसत हो गया।
रात नौ बजे सुनील के पांव यूथ क्लब में पड़े।
रमाकान्त उसे आफिस में बैठा चार मीनार के कश लगाता मिला।
“आ भई, काका बल्ली।"-रमाकान्त उसे देखते ही प्रसन्न भाव से बोला-“जी आयां नूं।" __सुनील उसके सामने एक कुर्सी पर ढेर हो गया और लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाल कर एक सिगरेट सुलगाने में मशगूल हो गया।
“अब बोल”-रमाकान्त बोला-"विस्की नीट पियेगा या माशूक के साथ?"
"मुश्किल सवाल है। जवाब सोचने में वक्त लगेगा।”
"सदके जावां।"
"संजीव सूरी की और उसके भाई की क्या खबर है?"
"खबर खराब ही है, मालको।"
“क्या हुआ?"
“कल रात लिंक रोड से जब मैंने यहां फोन किया था तो लिंक रोड दो आदमियों को पहंचने के लिये कहा था जिनमें से एक संजीव सूरी के पीछे और दूसरा उसके भाई के पीछे लगता। इत्तफाक ऐसा हुआ कि उस वक्त जौहरी के सिवाय क्लब में कोई भी नहीं था। उसने किसी के घर फोन करके उसे लिंक रोड पहुंचने के लिये कहा था और खुद भी फौरन ही वहां के लिये रवाना हुआ था। वो कहता है कि जब वो वहां पहुंचा था तो उस वक्त दोनों भाई खिसक जाने की अपनी अपनी तैयारी मुकम्मल कर चुके थे। संजीव ने जौहरी के सामने अपने छोटे भाई को एक टैक्सी में सवार कराकर वहां से रवाना कर दिया था। तब तक मेरा दूसरा आदमी वहां पहुंचा नहीं था और जौहरी एक ही भाई को कवर कर सकता था। वो या छोटे भाई की टैक्सी के पीछे लग सकता था या संजीव की ताक में वहीं मौजूद रह सकता था।" ।
"उसे संजीव की निगरानी को तरजीह देनी चाहिये थी।"
“ओये, मां सदके, जौहरी काबिल और तजुर्बेकार आदमी है, उसने ऐन ये ही किया था।"
"गुड"।
“छोटे भाई की रवानगी के थोड़ी देर बाद, जौहरी कहता है कि कोई एक बजे के करीब, एक फुल पटाखा लड़की वहां पहुंची और संजीव के फ्लैट वाली इमारत में दाखिल हो गयी। प्यारयो, जौहरी की उसकी तरफ तवज्जो महज इसलिये गयी थी कि क्योंकि एक तो वो इतनी रात गये वहां पहुंची थी और दूसरे, बकौल जौहरी, वो बहुत ही खूबसूरत थी।"
“संजीव से उसका कोई लेना देना था?"
“उस वक्त को जौहरी को नहीं लगा था कि लेकिन बाद में पूरा पूरा लेना देना निकला था।"
"कैसै?"
"उस लड़की के इमारत में दाखिल होने के दस मिनट बाद संजीव अकेला बाहर निकला था और पैदल ही एक तरफ चल दिया था। जौहरी कार में था। उसने सावधानी से कार उसके पीछे लगा दी थी। संजीव आगे एक चौराहे पर तब पहुंचा था जबकि उधर की बत्ती लाल थी। लिहाजा जौहरी भी लाल बत्ती पर जा खड़ा हुआ था। प्यारयो, ज्यों ही बत्ती हरी हुई, संजीव सड़क क्रॉस करने की जगह दाईं ओर की पटरी पार करके परली तरफ की सड़क पर पहुंच गया। तभी दूसरी तरफ से एक सफेद जेन वहां पहुंची जिसे कि वो ही पटाखा लड़की चला रही थी। उसने संजीव की बगल में कार रोकी थी, संजीव आनन-फानन कार में सवार हुआ था और फिर वो कार जौहरी की कार के रुख से उलटी दिशा में ये जा वो जा। जौहरी की बदकिस्मती ये निकली कि रात की उस घड़ी भी उस सड़क पर ट्रकों का एक कानवाय जा रहा था जिसकी वजह से वो अपनी कार को टर्न करके परली सड़क पर न ले जा सका। जब तक वो ऐसा करने में कामयाब हुआ, तब तक वहां उस जेन की हवा भी नहीं मिल रही थी। जौहरी कहता है कि उसने खूब दायें-बायें कार दौड़ाई थी लेकिन उसे वो जेन दोबारा नहीं दिखाई दी थी।"

“यानी कि वो जमूरा हाथ से निकल गया!"
"हां। जौहरी बेचारा बहुत शर्मिन्दा है।"
"उसे क्या इस बात का इलहाम होना था कि संजीव सूरी ऐसी उस्तादी वाली कोई हरकत कर सकता था?"
"मैंने भी जौहरी को यही समझाया था लेकिन जरूर कोई इलहाम ही हुआ था उस भूतनी दे नूं।"
"या उसे महज अन्देशा था कि उसकी निगरानी हो रही हो सकती थी और उसने अन्दाजन ही वो कदम उठाया था।" .
“यानी कि उसने उस जेन वाली लड़की को अपनी उस खास । मदद के लिये ही बुलाया था।"
“ऐसा ही जान पड़ता है। अब कोई तरीका है तुम्हारी निगाह में ये जानने का कि वो कहां गया?"
"एक तरीका है।" “कौन सा।"
"पुलिस को यकीनन उसकी तलाश होगी। ऐसे मामलों में उनके साधन असीमित होते हैं। उसके छोटे भाई की तरफ तो पुलिस की तवज्जो नहीं जाने वाली लेकिन संजीव की तलाश में वो उन्हें उपलब्ध तमाम साधन आजमायेंगे। प्यारयो, अगर इस मामले में पुलिस के हाथ कोई नतीजा लगा तो यकीन जानो कि हमारे हाथ भी लगेगा।"
"उस पुलिसिये की वजह से जो पुलिस हैडाटर में तुम्हारा भेदिया है?"
"हां।"
"बात कर ली उससे?"
"हां। बात भी और सौदेबाजी भी। आधी रकम पहुंचा भी दी। मुकम्मल रकम मैं तेरे से वसूल करूंगा।"
“करना।"
“तभी तू बाज आयेगा फोकट के, नाशुक्रे काम करने से।"
“रमाकान्त पैसा ही सब कुछ नहीं होता।"
"मोतियांवालयो, ये बात वो ही लोग कह सकते हैं जिनके पास पैसे की भरमार होती है। फिलहाल ऐसे न तुम हो, न मैं हूं।"
"तुम तो हो?"
"नहीं हूं। दूर के ढोल सुहावने लगते हैं, प्यारयो।" :. "रमाकान्त, ये बात काबिलेगौर है कि वो जेन वाली लड़की : रात के एक बजे संजीव सूरी की मदद के लिये उसके पास पहुंची थी। ऐसा कोई लड़की पुराने, गहरे, ताल्लुकात की बिना पर ही कर सकती है। इस लिहाज से कोई बड़ी बात नहीं कि उस लड़की का अक्सर संजीव सूरी के यहां आना जाना होता हो। जौहरी ने उस लड़की को देखा था। वो उसका हुलिया बयान करके उस बाबत पूछताछ कर सकता है। संजीव सूरी के फ्लैट वाली इमारत में कोई न कोई ऐसा शख्स जरूर निकल आयेगा जिसने कि उस लड़की को देखा होगा और वो उसकी बाबत कुछ जानता होगा। सूरी तो हाथ से निकल गया और अब दोबारा पकड़ाई में आते आते ही आयेगा, उस दौरान अगर हमें उस लड़की की बावत कोई जानकारी हासिल हो जाये तो वो भी सूरी की तलाश में कारगर साबित हो सकती है।"
“हो तो सकती है, मालको।"
"तो फिर?" ..
"फिर क्या? मैं जौहरी को इस बाबत जरूरी हिदायत दूंगा।"
"गुड।"
“अब विस्की मंगायें?"-रमाकान्त बोला। तभी अर्जुन ने भीतर कदम रखा। ..
"मेरे लिये भी।"-तत्काल वो बोला।
"क्यों नहीं?"- रमाकान्त बोला- “सौदागरी से आया है। अपना शरवन पुत्तर। विस्की नहीं पियेगा तो अगले दिन काम कैसे कर सकेगा!"
"वही तो।"

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