रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
"मिस्टर, अगर ये सवाल तुम ये सोच के कर रहे हो कि मैंने उसका कत्ल किया होगा
तो गलती कर रहे हो। मैं जब से रिटायर हुआ हूं, व्हीलचेयर पर हूं। मैं चाह कर
भी उसका कत्ल नहीं कर सकता था।"
"क्यों व्हीलचेयर पर हैं? टांगों को क्या हुआ?"
"टांगों को कुछ नहीं हुआ। पीठ को हुआ। रीढ़ की हड्डी को हुआ। अभी और कई महीने
लगेंगे ठीक होने में। शायद न भी ठीक हो।"
"ओह!"
"मैं या बैठ सकता हूं या लेट सकता हूं। चल नहीं सकता।"
"ओह! ऐसा कैसे हो गया?"
"बस हो गया। किस्मत खराब हो तो क्या नहीं हो सकता! और फिर कहते नहीं हैं कि
मुसीबत अकेले नहीं आती!"
"आप ठीक कह रहे हैं।" उसका शुक्रिया अदा करके सुनील वहां से रुखसत हुआ।
वो पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा। इन्स्पेक्टर प्रभुदयाल अपने आफिस में मौजूद था।
“नमस्ते, माईबाप।”–सुनील मीठे स्वर में बोला।
"आओ।"-प्रभुदयाल बोला-“आओ, रिपोर्टर साहब। कैसे आये?"
“आप से मिलने चला आया।"
"बैठो।"
“शुक्रिया।"
"कुछ पियोगे? ठण्डा? गर्म? और गर्म तो मैं नहीं पिला सकता।"
"सिगरेट पिऊंगा। अगर इजाजत हो तो।"
"इजाजत है, भई।"
सुनील ने अपना लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया।
"कृपानिधान"-फिर वो बोला-"कल रात आप से मुलाकात नहीं हुई, सारा दिन दिल
घबराता रहा, बुरे-बुरे खयाल आते रहे।
"ड्रामा मत करो। कहां मुलाकात नहीं हुई?"
"नेपियन हिल पर। जहां कि कल रात गोपाल बतरा का कत्ल हुआ था। आप तो पहुंचे ही
नहीं वहां।"
"तुम भी तो वहां न पहुंचे जहां मैं था?"
"आप कहां थे?"
"मुगल वाग। वहां रूलिंग पार्टी के एक बड़े नेता पर हमला हुआ था। आधी पुलिस
फोर्स वहां पहुंची हुई थी जिसमें कि मैं भी था।"
"मुझे खबर नहीं थी। होती भी तो मैं एक ही तरफ का रुख कर सकता था।"
"इधर भी यही प्राब्लम थी।"
"तभी तो।"
"बहरहाल मेरे नेपियन हिल न पहुंच पाने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
इन्स्पेक्टर सुखबीर चानना भी बहुत काबिल पुलिस अधिकारी है।" .
"वो तो वो जरूर होगा, माई बाप, लेकिन प्राब्लम ये है कि काबिल पुलिस अधिकारी
होने के अलावा वो कुछ और भी है।"
"और क्या है वो?"
“वो मकतूल की पटाखा बीवी का भूतपूर्व प्रेमी है।"
"अच्छा!"-प्रभुदयाल की भवें तनीं।
“जी हां। और इस बात की तसदीक घोड़ा और घोड़ी दोनों के मुंह से हो चुकी है।"
"तो क्या हुआ? पुलिस अधिकारी क्या इंसान नहीं होता? उसकी क्या कोई सोशल लाइफ
नहीं होती?"
"होती है। हर किसी की होती है।"
"तो फिर?" .
"वो आज भी, भावना बतरा की शादी के दो साल बाद भी, उस पर दिल रखता है।"
"ओह!"
"एक शादीशुदा औरत की चाहत को दो साल तक दिल में बरकरार रखना कोई आम बात
नहीं।"
"उसने ऐसा खुद कहा था कि वो अभी भी भावना बतरा पर दिल रखता था?"
"तुम्हें कहा था?"
"मुझे नहीं कहा था। खुद भावना बतरा को कहा था लेकिन मैंने सुना था।"
"कैसे सुना था?"
"मेरे पास एक जादुई चिराग है जो कि मुझे कहीं भी यूं पहुंचा देता है कि मैं
सब को देख सकता हूं, कोई मुझे नहीं देख सकता।"
"बकवास मत करो। कल इत्तफाक से फिर सुनीलियन पुड़िया चल गयी होगी। मैं क्या
तुम्हें जानता नहीं!"
सुनील बड़े धूर्त भाव से आंख दबा कर हंसा।
“अब प्राब्लम क्या है?" -प्रभुदयाल बोला।
"प्राब्लम ये है कि वो आदमी गोपाल बतरा की विधवा की, जो कि उसकी एक्स गर्ल
फ्रेंड है कोई ऐसी हिमायत कर सकता है जो कि उसे नहीं करनी चाहिये।"
"मसलन क्या?" .
"अगर कत्ल बीवी ने किया होगा तो वो बीवी के गुनाह पर . . . पर्दा डाल सकता
है। वो बीवी पर से फोकस हटाने के लिये किसी दूसरे सस्पेक्ट को कातिल करार
देने की जिद पकड़ सकता है।
वो...." - सुनील ठिठक गया। उसने देखा प्रभुदयाल पहले ही बड़ी मजबूती से इनकार
में सिर हिला रहा था।
“क्यों?"-वो बोला-“नहीं हो सकता ऐसा?"
"नहीं हो सकता।"-प्रभुदयाल बोला-"चानना बहुत आदर्शवादी नौजवान है और बहुत
निष्ठावान पुलिस अधिकारी है।"
"बन्दानवाज, आदर्श और निष्ठा का अपना मुकाम होता है और दिल की लगी का अपना
मुकाम होता है।"
"होता होगा लेकिन इस वजह से किसी भी वजह से-वो अपने फर्ज से कोताही नहीं कर
सकता। अगर बीवी कातिल है तो वो उसे भी नहीं बख्शेगा, भले ही ऐसा करते वक्त
उसका कलेजा चाक हो जाये।"
"बहुत यकीन से कह रहे हैं आप ये बात?"
"हां। बहुत यकीन से कह रहा हूं। मैं चानना को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं।"
"केस हल कर लेगा?"
"तुम उसे कनफ्यूज नहीं करोगे तो कर ही लेगा।"
"मैं क्यों कनफ्यूज करूंगा?" "क्योंकि आदत से मजबूर हो।"
"माईबाप, मेरी ऐसी कोई पेश आपके साथ नहीं चलती तो क्या किसी नये आदमी के साथ
चल जायेगी?"
“तुम्हारी माया अपरम्पार है, रिपोर्टर साहब। चानना को तो अभी ये भी पता नहीं
चला होगा कि असल में तुम हो क्या बला!"
"जनाब, इसे मैं अपनी हत्तक समझं या तारीफ?"
"मिल चुके हो चानना से?"
“मजबूरन रूबरू होना तो पड़ा था कल रात नेपियन हिल पर लेकिन कोई बातरतीब
मुलाकात नहीं हो पायी, कोई कम्यूनिकेशन नहीं बन पायी।"
"बन जायेगी। मैं बात करूंगा उससे।"
"दैट्स वैरी गुड लेकिन जनाबेआली, बरायमेहरबानी कुछ अच्छा अच्छा ही कहियेगा
उसे मेरे बारे में, पुलन्दा ही न बांध दीजियेगा इस गरीब रिपोर्टर का।"
"गरीब रिपोर्टर!"
"बेचारा! अंग्रेजी भी कम्बखत जुबान है। एक ही लफ्ज के दो-दो मतलब होते हैं।
अब देखिये पुअर (POOR) का मतलब गरीब भी होता है और बेचारा का भी। और...."
प्रभुदयाल ने जमहाई ली।
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