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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


"सुना है सभी लेखक होते हैं।" -सुनील बोला-“लेकिन सागर साहब शायद तनहाईपसन्द भी हैं।"
"खयालों की दुनिया में रहने वाले जो ठहरे।"
"यू आर राइट, माई डियर।"
वे बरामदे में पहुंचे।
"तुम यहीं ठहरो"वो बोली- "मैं जरा भीतर का माहौल देखती हूं और उसे तुम्हारी आमद के लिये तैयार करती हूं।"
"ठीक है।"
वो एक दरवाजा ठेलकर भीतर दाखिल हो गयी। उसने अपने पीछे दरवाजे को वापिस धक्का दिया लेकिन वो पहले की तरह, ठीक से, बन्द न हो सका।
सुनील बरामदे में ठिठका खड़ा रहा।
"वैलकम! वैलकम!" -भीतर से लेखक की जोशभरी आवाज आयी-"मझे मालम था कि एक दिन कच्चे धागे से बंधे सरकार चले आयेंगे लेकिन ऐसा इतनी जल्दी होगा, ये नहीं मालूम था।”
"अरे! छोड़ो! छोड़ो!"
"अभी भी छोड़ो! बीच की दीवार ढह गयी, फिर भी छोड़ो!"
"छोड़ो भी।"
"जानती हो इस झोंपड़े में मैं किसलिये रह रहा हूं? तुम्हारी, खातिर!...तुम्हारे करीब रहने के लिये। वरना मैं जाकर ऊटी में रह सकता हूं, स्विट्जरलैंड में रह सकता हूं।"
"सागर साहब, प्लीज शट अप एण्ड लिसन । मैं यहां..."
सुनील ने सावधानी से दरवाजे की झिरी से भीतरा झांका तो भावना को लेखक के आगोश में छटपटाती पाया।
"अब मैं कुछ नहीं सुन सकता....जब तक बतरा जिन्दा था, तब तक बात और थी लेकिन अब वो मर चुका है और अब तुम आजाद हो इसलिये अब मैं भी अपनी मुहब्बत का पुरजोर और बातरतीब इजहार किये बिना नहीं रह सकता।"
“अरे, सुनो। सुनो। भगवान के लिये सुनो।"
"क्या सुनूं!"
"मैं यहां अकेली नहीं आयी हूं।"
लेखक को जैसे सांप सूंघ गया। तत्काल उसके हाथ-पांव .. शिथिल पड़ गये।
"अ...अकेली नहीं आयी हो!"-लेखक के मुंह से निकला।
"वो प्रेस रिपोर्टर सुनील मेरे साथ है।"
"ओह! कहां है।"
“बाहर बरामदे में खड़ा है।"
“उसे क्यों साथ लायीं?"
"मैं उसे नहीं, वो मुझे साथ लाया है।"
"क्यों ?"
"उसे तुम्हारे टाइपराइटर के इस्तेमाल की जरूरत है।"
“दैट्स राइट।" -सुनील दरवाजा ठेल कर भीतर कदम रखता हुआ बोला- “हल्लो!”
लेखक के चेहरे पर बड़े असहिष्णुतापूर्ण भाव आये।
"क्या है?"-वो रुक्ष स्वर में बोला।
"हड्डी है।"
"क्या?"
“कबाब में!"
“क्या चाहते हो?"
“जनाब, आप लेखक हैं फिर भी आपकी याददाश्त इतनी कमजोर है कि तीस सैकंड पहले की बात याद नहीं रख सकते। अभी मैडम ने बताया तो है कि हम क्या चाहते हैं?"
"हम!"
“कबाब”–सुनील ने पहले भावना की तरफ और फिर अपनी तरफ इशारा किया- “और हड्डी।"
भावना, जैसे माहौल की तल्खी कम करने के लिये, जबरन हंसी।
लेखक ने असहाय भाव से गर्दन हिलायी और लम्बी सांस छोड़ी।
विस्की का भभूका सुनील के नथुनों से टकराया।
लेखक सरेशाम टुन्न था।

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