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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


"मैं जरा टाइपराइटर खटखटा के आती हूं।" --भावना बोली ... और पिछवाड़े के एक बन्द दरवाजे की तरफ बढ़ी।
फिर वो उस दरवाजे के पीछे गायब हो गयी।
उसे ये मालूम होना, कि उस बंगले में टाइपराइटर कहां मौजूद था, अपने आप में सबूत था कि वो वहां कोई पहली बार नहीं आयी थी।
पीछे सुनील ने अपना लक्का स्ट्राइक का पैकेट निकाला और उसे अपने विशिष्ट अंदाज से यूं झटका कि एक सिगरेट पैकेट से आधा वाहर उछल आया। उसने पैकेट लेखक की तरफ बढ़ाया और बोला-"सिगरेट!"
अनमने भाव से लेखक ने वो सिगरेट पैकेट से बाहर खींच लिया।
सुनील ने एक सिगरेट खुद लिया और फिर लाइटर निकाल कर पहले उसका और फिर अपना सिगरेट सुलगा लिया।
"तो"-सुनील ढेर सारा धुआं उगलता हुआ बोला-- “जनाब भी मैडम की फैन क्लब के चार्टर्ड मेम्बर हैं।"
“जो मर्जी कहो, भाई।" वो बड़े दार्शनिक भाव से बोला "भले ही ये भी कहो कि अपने रास्ते का पत्थर हटाने के लिये कत्ल मैंने ही किया है।...मेरे टाइपराइटर की टाइपिंग का नमूना भी शायद तुम्हें मेरे खिलाफ सबूत खड़ा करने के लिये ही चाहिये।"
“खालिस मिस्ट्री राइटर हैं आप। बात का कहां से कहां लिंक मिला लेते हैं!"
उसने निशब्द सिगरेट का एक लम्बा कश लिया।
“तो भावना पर दिल रखते हैं? इसीलिये इस टूटे-फूटे बंगले में रहना मंजूर है आपको?"
“बाहर खड़े सब सुन रहे थे?"
"हां।"
"मुझे अपनी लापरवाही का अफसोस है।"
"नशे में आदमी लापरवाह हो ही जाता है।"
लेखक ने एक बार घूर कर सुनील की तरफ देखा लेकिन फिर तत्काल परे देखने लगा।
“वैसे आप की कोई गलती नहीं है। मैडम को खुदा ने बनाया ही ऐसा है कि उन पर किसी का भी दिल आ सकता है।"
"कहीं तुम्हारा भी तो नहीं आ गया?"
"आ सकता था लेकिन नहीं आया।"
"क्यों?"
"मैं कम्पीटीशन से घबराता हूं। मुझे अनार तभी मंजूर है. जबकि वो एक ही बीमार के लिये हो। एक अनार और सौ बीमार वाला सैट-अप मुझे मंजूर नहीं।"
"सौ बीमार?"
“दो दिन में चार तो सामने आ चुके हैं,धीरे-धीरे सौ तक स्कोर भी पहुंच ही जायेगा।"
"चार!"
“बतरा, चानना, सूरी, संतोषी।"
वो हकबकाया और मुंह बाये सुनील की तरफ देखने लगा।
"लगता है मैडम यहां अक्सर आती जाती रहती हैं। छुप के मिलने के लिये ये बहुत बढ़िया और सेफ जगह है। लव नैस्ट। प्रेम घरोंदा। इसीलिये आपको पसन्द है। नो?"
लेखक ने कोई सख्त बात कहने के लिये मुंह खोला ही था कि भावना ने वापिस वहां कदम रखा।
“डन।"
-वो हाथ में थमे कागज सुनील को दिखाती हुई बोली- “एक ओरीजिनल, एक कार्बन कापी।"
“गुड।"
"क्या बात है, सागर साहब? आज कल कुछ लिख नहीं रहे?"
“कैसे जाना?"-लेखक के मुंह से निकला। ...
"टाइपराइटर पर धूल की मोटी परत चढ़ी हुई थी। साफ पता चल रहा था कि आपने कब से उसे छुआ तक नहीं था। उतना वक्त मुझे टाइप करने में नहीं लगा जितना कि उसे झाड़ने-पोंछने में लगा।"
“आजकल मूड नहीं है लिखने का।"-वो होंठों में बुदबुदाया।
"वही तो।"
“तो इसकी खातिर नमूना हासिल कर लिया तुमने।"
“नमूना!"
"जो तुम्हारे हाथ में है।....मेरी लापरवाही से, बल्कि .. बदकिस्मती से, इसे मालूम हो गया है कि मैं....मैं तुम पर दिल रखता हूं।....अब ये इसी को मेरे खिलाफ उद्देश्य की तरह इस्तेमाल करेगा और मेरे टाइपराइटर को मेरे खिलाफ सबूत बना के पेश करेगा।"
“आप खामखाह बात का बतंगड़ बना रहे हैं। ऐसा कुछ नहीं है। आपका टाइपराइटर सिर्फ इसलिये इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि बतरा साहब का टाइपराइटर पुलिस के किये उनकी स्टडी में लॉक हो गया है।"
“आई सी।"-लेखक आश्वासनहीन स्वर में बोला।
"कृपानिधान" -सुनील बोला- “अगर टाइपराइटर पर वाकई धूल की परत चढ़ी हुई थी तो आपको किसी बात की फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। जो टाइपराइटर एक मुद्दत से इस्तेमाल न हुआ हो, वो मेरी तवज्जो का मरकज नहीं हो सकता।"
“टाइप क्या किया?"-वो भावना की तरफ घूमा-“मुझे दिखाओ।"
सुनील ने इंकार में सिर हिलाया।

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