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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


बड़े यत्न से वो उठ कर अपने पैरों पर खड़ा हुआ। उसकी खोपड़ी तक भी सांय-सांय कर रही थी और फोड़े की तरह दुख रही थी। लड़खड़ाता-सा वो सड़क पर पहुंचा। वहां बिजली के एक खम्बे का सहारा लेकर उसने अपनी जेबें टटोली तो पाया कि बटुवे समेत जेबों का सब सामान चौकस था। कांपते हाथों से उसने अपना सिगरेट का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगाया।
उससे बहुत दूर निकल चेन' की रोशनियां वेशुमार जुगनुओं की तरह चमक रही थीं।
वो सड़क बीच को जाती थी इसलिये उसका नाम बीच रोड था। और इसलिये रात के वक्त उस पर आवाजाही बहुत घट जाती थी। रात की उस घड़ी वहां से कोई सवारी मिलना करिश्मा ही होता।
अलबत्ता लिफ्ट मिल सकती थी। क्लब से लौटता कोई वाहन उसे लिफ्ट दे सकता था। । तभी दूर सड़क पर क्लब की दिशा में एक कार की हैडलाइट्स चमकीं।
सुनील सड़क पर आकर उसकी तरफ हाथ हिलाने लगा। कार उसके पहलू में आकर रुकी।
वो संचिता की लाल मारुति थी।
“अरे!"-हैडलाइट्स के पीछे से उसे अर्जुन की आवाज सुनायी दी-"ये तो गुरु जी हैं।"
ड्राइविंग सीट पर बैठी संचिता ने हैडलाइट्स बन्द की।
तत्काल अर्जुन कार से बाहर निकला और झपटकर सनील के पास पहुंचा। उसने सुनील के धूलभरे अव्यवस्थित कपड़ों पर और सुनील की हलकान सूरत पर एक निगाह डाली।
"क्या हुआ?"-वो घबराये स्वर में बोला।
"क्लब का बिल चुकाये बिना खिसक रहा था" - सुनील झूमता सा बोला-"सिक्योरिटी गार्ड्स ने धुन दिया।"
“मजाक मत कीजिये, गुरु जी। बताइये, असल में क्या
हुआ?"
"यहां से हिल, बताता हूं।"
वो कार में-सुनील संचिता के पहलू में आगे और अर्जुन पीछे-सवार हुए।
सुनील ने बड़े यत्न से नया सिगरेट सुलगाया।
“चलो।"--फिर वो बोला। .
संचिता ने कार को गियर में डाला और एक्सीलेटर दिया। .
"क्या हुआ?"-फिर वो बोली।
"निरंजन चोपड़ा मेरी तारीफ कर रहा था।"-सुनील बोला-"बोला, तूने तो बहुत आला दिमाग पाया है। लेकिन बालों में छुपा रहने की वजह से उसकी किसी को खबर नहीं लगती है। उसने ऐसा इन्तजाम कर दिया कि दिमाग बालों से बाहर दिखाई देने लगा है।"-सुनील ने अपना सिर उसकी तरफ झुकाया और बोला-"देखो।"
"अरे! ये तो गूमड़ निकला हुआ है बहुत बड़ा!"
“गुरु जी, मजाक छोड़ो।"-अर्जुन व्याकुल भाव से बोला "सच बताओ, क्या हुआ?" ,
सुनील ने बताया।
“जरूर वही कातिल है।”–सुन कर अर्जुन बोला-“तभी तो इतना भड़का।"
"तो तानिया ड्रग एडिक्ट है।" -संचिता बोली।
"हमें पुलिस में रिपोर्ट लिखानी चाहिये।"-अर्जुन जोश से बोला।
"कोई फायदा नहीं होगा।" -सनील बोला-"मैं निरंजन चोपड़ा के खिलाफ कुछ साबित नहीं कर सकूँगा। वो तो इस बात से भी मुकर जायेगा कि मैं उसके आफिस में गया था।"
"तानिया ने आपको वहां देखा था?" ।
"लेकिन पहचाना नहीं था। मेरा मुंह हैट से ढक दिया गया था, इसलिये।"
"ओह!"
"तब मेरी तरफ उसकी तवज्जो भी नहीं थी। उसे तो अपनी खुराक की पड़ी हुई थी।"
“आप क्या करेंगे? जो हुआ, उसे भूल जायेंगे?"
“ऐसे कैसे भूल जाऊंगा?"
"तो क्या करेंगे?"
"कल तक इन्तजार कर, मेरे लख्ते जिगर।"--सुनील एक चेतावनीभरी निगाह संचिता की तरफ डालता हुआ बोला- “जो होगा सामने आ जायेगा।"
अर्जुन ने इशारा समझा और तत्काल खामोश हो गया। "बिल का क्या हुआ?"-सुनील ने पूछा।
"मैंने भरा।"-अर्जुन बड़ी शान से बोला।
"मैंने तो" -संचिता बोली-“कहा था कि मैं...."
"पेईंग दि बिल इज ए मैन्स जॉब, वेबी। सो ए मैन डिड इट।"
"शाबाश!" -सुनील बोला।
बाकी का रास्ता, खामोशी से कटा।

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