रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
आखिरकार संचिता ने कार को 'ब्लास्ट' के आफिस के सामने ले जाकर रोका जहां से
कि उसने 'निकल चेन' जाने के लिये सुनील और अर्जुन को पिक किया था और जहां
सुनील की मोटरसाइकिल और अर्जुन का स्कूटर खड़ा था। उन्हें वहां ड्रॉप कर के
संचिता आगे अपनी मंजिल की ओर बढ़ चली।
“अर्जुन”-पीछे सुनील बोला-निकल चेन' में बिल चुकाने को पैसे थे तेरे पास?"
"थे।"-अर्जुन,बोला-“तभी तो चुकाया। लेकिन...." "क्या लेकिन?"
"गुरु जी"-वो रुआंसे स्वर में बोला-“अगर बिल की रकम दस रुपये भी और ज्यादा
होती तो मेरी मिट्टी पलीत हो गयी थी लड़की के सामने। बिल चुकता करने के बाद
अब सिर्फ पांच रुपये वचे हैं मेरी जेब में।"
"कितने का बिल था?"
"अट्ठारह सौ चालीस रुपये का।"
सुनील ने पर्स निकालकर वो रकम अर्जुन को दी और बोला- "मैं वाउचर बना कर आफिस
से वसूल कर लूंगा।" .
अर्जुन की बांछे खिल गयीं।
"शुक्रिया, गुरुजी।"-वो हर्षित स्वर में बोला- “आप विस्कियों नहायें,
ब्रांडियों फलें।"
"मस्का नहीं। मस्का नहीं।"
"आपकी शागिर्दी का सबसे बड़ा फायदा यही है कि आप दूसरे का खयाल बहुत रखते
हैं।"
“अबे, चिमनी के धुएं, दूसरे भी तो मेरा खयाल रखते हैं! एक हाथ दूसरे हाथ को
धोता है।"
“वो तो है।"
“कल मैंने तुझे पार्टी के मेहमानों और घर के नौकर-चाकरों से पूछताछ करने को
कहा था। कुछ किया या नहीं?"
"कुछ तो किया। सब को स्क्रीन करने में तो टाइम लगता है न!"
"कुछ क्या किया?"
"कुछ ये किया कि नौकर-चाकर तो मैंने तमाम के तमाम ठोक बजा लिये हैं। उन्हीं
से दो बहुत दिलचस्प बातें मालूम हुई हैं जो कि मैं आप को फौरन बताना चाहता था
लेकिन तब संचिता साथ थी इसलिये खामोश रहा।"
"अब वोल।"
"पहली बात ड्राइवर जगतसिंह की बाबत है। कहा गया था कि कत्ल के वक्त के दौरान
तमाम नौकर-चाकर किचन में थे लेकिन ऐसा तो नहीं हो सकता।"
"क्यों नहीं हो सकता।"
"बतरा गाड़ी खुद चला रहा हो तो ड्राइवर जगतसिंह की ड्यूटी होती है कि उसके
आते ही वो कार को गैराज में बन्द करके आये जो कि कोठी के पिछवाड़े में है।
कत्ल की रात को भी कार गैराज में थी जहां कि उसे जगतसिंह खड़ी करके आया था।
इसका क्या मतलब हुआ, गुरु जी?".
“यही कि कम से कम उतना अरसा वो किचन में नहीं था जितना कि कार को गैराज में
खड़ी करके आने में दरकार होता है।
"बिल्कुल। अब बतरा का कत्ल उसके लौट के आते ही हो गया वताया जाता है। इस
लिहाज से कत्ल के वक्त तो ड्राइवर जगतसिंह को पिछले कम्पाउन्ड में कहीं होना
चाहिये था।"
"फिर खानसामा दशरथ उसका गवाह कैसे हो सकता है कि वो हर वक्त किचन में था?"
"ऐसा कौन कहता है?"
"भावना कहती है।"
"उसे असलियत की खबर कैसे हो सकती है? वो तो वही कुछ कह सकती है जो कि उसे
बताया गया हो। वो तो अपने कमरे में थी। नौकरों ने कहा कि कत्ल के वक्त के
आसपास सब किचन में थे, उसने मान लिया।"
"ठीक। और?"
"और ड्राइवर जगतसिंह की खानसामा दशरथ के साथ अच्छी जुगलबन्दी है।"
"जरूर इसीलिये उसने जगतसिंह की बाबत कह दिया होगा ' कि वो हर वक्त किचन में
था।" ।
"गुरु जी, जो बात मैं आगे बताने जा रहा हूं, उससे नहीं लगता कि उसने ऐसा
जगतसिंह की हिमायत के लिये किया होगा। अगर वो जगतसिंह का हिमायती होता तो वो
मुझे वो बात न बताता।"
"कौन सी बात?" .
"जगतसिंह और दशरथ कभी कभार रात को घूँट लगाते हैं। दशरथ कहता है कि दो हफ्ते
पहले ऐसे ही एक ड्रिंकिंग सैशन में नशे में टुन्न होकर जगतसिंह ने कहा था कि
पहला सेफ मौका हाथ लगते ही मालिक उसके हाथों टें बोल जायेगा।"
"मालिक यानी कि बतरा!"
“और टें बोल जायेगा, यानी कि भगवान के घर पहुंच जायेगा?"
“पहुंच नहीं जायेगा, पहुंचा दिया जायेगा। कर्टसी जगतसिंह ड्राइवर।"
"बिल्कुल।"
“अब दूसरी बात बोल।"
"वो इमरती....जिसका नाम रसभरी होना चाहिये था.... उसने मुझे एक मार्के की बात
बताई है जो कि दूसरी बात है।"
"क्या? बात तो बोल।" ,
"गुरु जी, आपने नोट किया होगा कि वो बहुत लाउड ड्रैस पहनती है। शीशों से जड़ी
चोली ! रंगीन कढ़ाई वाली घघरी! कई रंगों वाली ओढ़नी!"
- "हां"
“वो पोशाक ऐसी है कि वो फासले से भी आती दिखाई दे तो कोई सहज ही कह देगा कि
इमरती आ रही थी। यानी कि उसकी सूरत से ज्यादा उसकी पोशाक शिनाख्त है। यहां तक
समझ गये आप?"
सुनील ने उसे घूर कर देखा, उसने एक धौल उसकी पीठ पर जमायी।
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